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सम्यक्त्व-कौमुदी
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देखकर मैं तुझ पर प्रसन्न हुई। तुझे जो इच्छा हो वैसा वर माँग । उमयने तब वनदेवतासे कहा-यदि तुम मुझ पर प्रसन्न हो, तो मेरे इन अचेत पड़े साथियोंका विष दूरकर इन्हें सचेत कर दो और उज्जयिनीका रास्ता बतादो। 'तथास्तु' कह कर वनदेवताने उन्हें सचेत कर दिया । नीतिकार कहते हैं- उद्योग, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि और पराक्रम ये छह बातें जिसके पास हैं, उसकी देव भी सहायता करते हैं।
वे सब सचेत होकर उमयसे कहने लगे-भाई उमय, तुम्हारे प्रसादसे हम लोग आज जी गये । तुम्हारे व्रतका माहात्म्य हमने आँखों देख लिया । सच तो यह है कि तुम्हें कुछ भी असाध्य नहीं है। __ वनदेवताने उन्हें उज्जैनका मार्ग भी बता दिया । कुछ दिनों बाद मित्रोंको साथ लिए उमय अपने घर आ पहुँचा । उसे सदाचारी देखकर उसके माता-पिता, राजा, मंत्री परिवार तथा नगरके लोगोंने उसकी बड़ी प्रशंसा की, और कहाभाई उमय, तू धन्य है, उत्तम पुरुषोंकी संगतिसे तू भी पूज्य हो गया। नीतिकारोंने ठीक कहा है कि उत्तम पुरुषोंकी संगतिसे बुरा मनुष्य भी गौरवको प्राप्त कर लेता है। यही कारण है कि फूलों के साथमें गुंथा हुआ धागा बड़े बड़े पुरुषों के मस्तक पर पहुँच जाता है। दूसरे दिन नगरदेवताने आकर एक बहुत सुन्दर रत्नमयी मंडप बनाया और उसमें उमयको बैठाकर
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