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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व-कौमुदी श्रीसे कहा-बहू, मेरे गुरुने तुम्हारे पिताके पुनर्जन्मकी बाबत कहा है-चे मरकर वनमें मृग हुए हैं। उन्होंने जैसा कहा वह सत्य होना ही चाहिए। क्योंकि वे भूत, भविष्य और वर्तमानकी सब बातोंको जान लेते हैं। पद्मश्रीको अपने पिताकी इस प्रकार बुराई सुनकर मनमें बड़ा क्रोध आया । तब इसका बदला चुकानेके लिए उसने एक चाल चली। उसने बुद्धदाससे कहा-यदि सचमुच आपके गुरु ऐसे त्रिकालके ज्ञाता हैं, तो मैं अवश्य बौद्धधर्म स्वीकार करूँगी । इस बातको कुछ दिन बीतने पर एक दिन पद्मश्रीने कुछ बौद्ध साधुओंको भोजनके लिए निमंत्रण दिया । साधु लोग बड़ी प्रसन्नतासे भोजन करने आये। पद्मश्रीने भी बड़े आदरसे उन्हें बैठाया, उनकी पूजा की । घर बाहर उनके जूते रक्खे थे । पद्मश्रीने उनमेंसे उनके बायें पैरका एक एक जूता मँगवाकर उनका खूब बारीक चूर बनाया और उसके पकवान बनाकर उन साधुओंको खिला दिये । साधुओंने उस भोजनकी बड़ी प्रशंसा की। भोजनान्तमें पद्मश्रीने उन साधुओंको चंदन लगाया, पान खिलाये और कहा-महात्माओ, मैं सबेरे ही बौद्धधर्मको स्वीकार करूँगी। सब साधुओंने तब एक स्वरसे कहा बहुत ठीक है । इसके बाद जब वे लोग जाने लगे तो उन्होंने देखा कि उनके वायें पैरका एक एक जूता गायब है । इस आश्चर्यको देखकर उन्होंने कहा-ऐसी खुली जगहसे हमारे जूते कौन ले गया ? इस For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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