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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागश्रीकी कथा । मारीको ब्याह देकर सुखसे रहनाही अच्छा है । आप क्यों व्यर्थ झगडेमें पड़ते हैं। क्योंकि समझदार राजा ग्राम देकर देशकी रक्षा करते हैं, कुल द्वारा ग्रामकी रक्षा करते हैं और कुल तथा अपनी रक्षाके लिए समस्त पृथिवी तकको त्यागदेते हैं । जितारिने तब उत्तर दिया-तुम डरते क्यों हो ? मेरी तलवारकी चोट सह लेनेके लिए कोई समर्थ नहीं हो सकता। वज्र-प्रहारको सिरमें कौन सह सकता है ? हाथोंसे समुद्रको कौन तैरकर पार कर सकता है ? आगकी शय्या पर सुखकी नींद कौन सो सकता है ? हर एक ग्रासमें विषको खानेवाला कौन है ? यह सुनकर मंत्रीने फिर कहा-महाराज, भगदत्तकी सेना बड़ी है, उसके पास युद्ध सामग्री भी बहुत है और उसके सैनिकगण भी बड़े साहसी हैं । इसलिए युद्ध करना उचित नहीं। राजाने कहा-तुमने कहा वह ठीक है, पर सिद्धि और जय पराक्रमसेही मिलती है, केवल बहुत सामग्रीसे नहीं। - इसके बाद भगदत्तने जितारिके पास अपना दूत भेजा, जो अच्छा समझदार, बातको याद रखनेवाला, बोलनेमें चतुर, दूसरोंके अभिप्रायोंको जाननेवाला, धीर और सत्यवादी था । युद्धका यह नियम है कि पहले दूत भेजा जाता है और बादमें युद्ध किया जाता है । दूतसे शत्रु राजाकी सेनाकी सबलता और निर्बलताका पता लग जाता है। दूतने आकर जितारिसे कहा-महाराज, अपनी राजकुमारीकामेरे राजाधिराज भगदत्त के साथ व्याह करके आप सुखसे For Private And Personal Use Only
SR No.020628
Book TitleSamyaktva Kaumudi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
PublisherHindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay
Publication Year
Total Pages264
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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