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प्र. ९ख० ४-६म।
दंपरिधत्सवासः ॥५॥ परिधत्तपत्त वाससैनाए शतायुषो कृणुत दीर्घमायुः। शतं च जीव शरदः सुवर्गव मूनि चार्ये विभृजासि जीवन् ॥६॥ सोमो ददगन्धर्वाय 'या:' 'अतन्वत' तनु विस्तारे विस्तारितवत्यः, 'याः च' अन्तान् पट-सक्तान् ‘अभितः' उभयपाच योः 'अततन्थ' ग्रथितवत्यः, 'ताः देव्यः' हे कन्ये ! 'त्वां' 'जरसा' जरान्तं यावत् 'संव्ययन्तु परिधापयन्तु। है 'आयुमति !' दीर्घायुषि ! 'इदम्' प्रकृतं 'वासः' वसनम् ‘परिधत्म' परिधानं कुरु ॥५॥ ___ हे परिधापयितारः ! ऋत्विजादयः ! 'शतायुषोम्' शतवपंजीविनीम् “एनां' कन्यकाम् ‘वाससा' वस्त्रेण 'परि' सर्वतः 'धत्त धत्त' धारयतैव वेष्टनं कुरुतैव, किञ्च एतदीयम् ‘आयुः'
| যে দেবীরা এই বসনের সূত্র সকল প্রস্তুত করিয়াছেন, যে দেবীরা ইহা বয়ন করিয়াছেন, যে দেবীরা ইহাকে এই আকারে বিস্তৃত করিয়াছেন, এবং যে দেবীরা ইহার উভয় পাশ্বের ছিল সকল গ্ৰথন করিয়াছেন হে কন্যে ! সেই দেবীরা তােমাকে জরাবস্থা পর্যন্ত সােৎসাহে বস্ত্র পরিধান করাইতে থাকুন ; হে আয়ুস্মৃতি ! এই বস্ত্র পরিধান কর ॥৫
| হে বস্ত্র পরিধাপয়িতৃগণ ! তােমরা শতবর্ষজীবিনী এই কন্যাকে বসনে পরিবেষ্টিত কর এবং আশীৰ্বাদন দ্বারা ইহার
५ - जगतीच्छन्दः । वस्त्र कारादेवता। वस्त्र परिधापने विनियोगः । ६ --विष्टप्छन्दः। परिधापयितारो देवताः । उत्तरीय परिधापने विनियोगः ।
२म
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