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मन्त्र-जाह्मणाम् । गन्धर्वो दददग्नयो रविपुषां शादा दग्निर्भय मथो इमाम् ॥७॥म में पति या नः पन्थाः कल्पता
दौर्घ' 'कणुत' कुरुत। एवम परिधापयितारोऽभिधाय अधुना तामेव साक्षादाशस्त-हे 'आर्ये !' आर्यदेशोदभवे ! माननीये ! वा, 'सुवर्चाः' तेजखिनो सतो 'शरदःशतं शतशरदृतु-परिमितं कालं 'जीव' 'च' अपिच ‘जीवन्' जीवन्ती सती 'वसूनि ऐश्वर्याणि 'विभृजासि' भजख ॥६॥
___ 'इमा” कन्या 'सोमः' सूयतइति सोमः स्रष्ट देवता 'गन्ध
य' गा धारयति यः तस्मै पालकाय ‘ददत्' अदात् समर्पयत; सच गन्धर्व' अग्नये ददत् अग्निसमीपमधुना समर्पयत्; 'अग्नि साक्षिरूपेण स्थितः 'मह्यं परिणेत्र प्रदात्;' अथो' अनन्तरं 'रयि” धनं पुत्रान् च' अदादित्याशास्महे ॥७॥ পরমায়ু পরিবর্ধিত কর। হে আৰ্যদেশােদ্ভবে ! কন্যে ! ওমি তেজস্বিনী হইয়া শত শরৎ (অর্থাৎ শতবর্য) জীবিত থাক এবং জীবিত থাকিয়া ঐশ্বৰ্যসকল ভােগ কর ॥৬
| স্রষ্টা এই কন্যাকে পাতার হস্তে সমর্পণ করেন, পাতা এই অগ্নির নিকটে উপনীত করিয়াছেন, অগ্নি সাক্ষীরূপে উপস্থিত থাকিয়া ইহা আমাকে প্রদান করিলেন, ভরসা করি ধন পুত্ৰাদিও এই সমিভ্যারেই প্রদত্ত হইল ।৭
७- अनुष्टुपकन्दः । मोमादयी देवताः ।
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