________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१प्र० ५ख० १३-१२
म त्वाह्ने परिददात्वहस्त्वा राला परिददातु रात्रिस्वाहोरात्राभ्यां परिददात्वहोरात्रौ त्वाईमासेश्य: परिदत्ता मईमासास्वा मामेभ्यः परिददतु मासास्त्वर्तुभ्यः परिददत्वृतवस्त्वा संवत्सराय परिददतु सं वत्सरस्त्वायुषे जरायै परिददात्वसौ ॥ १५ ॥ अङ्गा
'सः' अहस्पतिः देवः 'वा' त्वां 'अङ्गे' दिवसाय 'आयुधे' आयुर्वर्ड नार्थ 'परिददातु' ; 'अहः' सच स्व कालेन संवर्द्धन 'ता' तां 'रात्रै' संवई नाय 'परिददातु'; 'रात्रिः' 'ता' लां 'अहोरावाभ्यां' 'परिददातु' ; 'अहोरात्रौ' 'ता' त्वां 'अईमासेभ्यः' पक्षेभ्यः ‘परिदत्ताम्'; 'अई मासाः' पक्षसङ्घाः 'वा' त्वां 'मारेभ्यः' 'परिददतु'; 'मासाः' 'वा' वां 'ऋतुभ्य:' 'परिददतु'; 'ऋतवः' 'त्या' त्वां 'संवत्सराय' 'परिददतु' ; 'संवत्सरः' 'त्वा' त्वां 'जरायै' आजराजौवनाय 'परिददातु' ; 'असो' त्वञ्च एतन्नाम्ना प्रसिद्धो भव ॥ १५ ॥
হে বালক ! এই দিবাপতি তােমার পরমায়ু বৃদ্ধির জন্য তােমাকে দিবাকালের করে সমর্পণ করুন; দিবা ঐ রূপে রাত্রির করে সমর্পণ করুন ; অহােরাত্র উভয়ে একত্রিত হইয়া মাসার্ধের অর্থাৎ পক্ষ কালের হস্তে সমর্পণ করুন; মাসার্ধগণ মাসসংঘের হস্তে সমর্পণ করুন ; মাস সকল ঋতুগণের হস্তে সমর্পণ করুন ; ঋতুগণ সংবৎসর কালে র হস্তে সমর্পণ করুন এইরূপে এক সংবৎসর দ্বিতীয় সংবৎসরের হস্তে দ্বিতীয় তৃতীয়ের হস্তে, তৃতীয় চতুর্থের হস্তে, এইরূপ ক্রমে জরা
१५...... आदित्य देवता । निगदः । नामकरण विनियोगः ।
७म
For Private And Personal Use Only