________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मन्त्र ब्राह्मणम् । न्द्रमसि कृष्णं पृथिव्या हृदय श्रितं । तदह विदाए स्तत्पश्यन् माह पौत्र मघदम्॥३॥ कोसि कतमोस्येषोस्यमतोमि ॥ श्राहस्पत्य मासं प्रविशासौ ॥१४॥ ___ 'चन्द्रमसि' त्वयि 'पृथिव्याः' 'हृदयं' छायारूपम् 'कृष्ण' कणवर्णं लाञ्छनं 'श्रितम्' 'आश्रितम् 'अहं' 'विधान' पदार्थवित 'तत' लाञ्छनं च सन्' तत्वतो जानन् आशासे -'पोत्रम्' पुस बन्धि 'अघ' पापफलं शाकादिकम् उपभुज्य ‘मा दम्' न रूदामितार्थः ॥ १३ ॥
हे पालक ! त्वं 'कासि' किनामधेयोनि ? 'कतमामि' अकालमरणधर्मासि ? आहोखित् पूर्णायुर्भागसि ? न जानासि वच्छृणु---“एषोऽसि” एतनामकः भवसि किञ्च "अमृतोऽसि" अमरणधर्मा भवसि । अतः 'असी' एतनामकः त्व 'आहस्पता' अहस्पते: सूर्यस्य इदं संक्रान्ति-कृतं सोरं 'मासं' कालं “प्रविश" उपभुज ॥ १४ ॥
হে চন্দ্র! তােমাতে আশ্রিত পৃথিবীর ছায়াস্বরূপ যে কৃষ্ণবর্ণ লাঞ্ছন তাহার প্রকৃত তত্ব আমি অবগত আছি;ভরসা করি— তামাকে পুত্র সম্বন্ধি পাপ-ফল শােকাদি ভােগ করত ক্রন্দন করিতে হইবে না। ১৩ | হে বালক ! তোমার কি নাম ? তুমি কে ? (অর্থাৎ অকালমৃত্যুর পথিক অথবা দীর্ঘায়ু)। যদি অবগত নহ, তবে শ্রবণ কর—তােমার এই নাম, তুমি পূর্ণায়ু হইবে ; দিবাকিরের কৃত (সৌর) এই মাসমে কালাতিপাত কর। ১৪
१४ ---आदित्य देवता। यजः । नाम करने विनियोगः ।
For Private And Personal Use Only