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मन्व-ब्राह्मणम् । स्त्रायतां गार्हपत्यः प्रजामस्यै जरदष्ठिं कृणोतु । अशन्योपस्था जीवता मस्तु माता पौत्र मानन्दमभिविबु ध्यता मिया खाहा॥१॥द्यौस्ते पृष्ठ रक्षतु वायुरूरू अश्विनौ च । स्तनन्धयस्ते पुत्रांत् सविताभि रक्षत्वा
'गार्हपत्यः' 'अग्निः' इमा” कन्या त्रायता' पालयतु 'अस्य' एतदर्थम् ‘जरदष्ठि' जरान्विता दीर्घायुषीम् प्रजा सन्तति-ततिं कृणोतु विदधातु, किञ्च ‘इयम् ‘जीवता जीवत्यु त्राणां माता 'सती' 'अशून्योपस्था' अशून्यागारा अविधवा 'अस्तु' अपिच 'पोत्रम्' आनन्द सुपुत्र सम्बन्धिन मानन्द 'विबुध्यताम्' विशेषेण जानीयात् ॥१०॥ __ हे 'कन्ये ! ते तव 'पृष्ठ' पृष्ठदेश ‘द्योः' द्यु-लोको 'रक्षतु'; 'जरू' ऊरूदेशो 'वायुः' 'च' अपिच ‘अश्विनी' दिवारात्रौ रक्षतु ; 'ते' तव 'स्तनन्धयः' स्तनन्धयान् ‘पुत्रान् हृदयरूपान् 'सविता' 'अभिरक्षतु' ; 'आ वाससः परिधानात्'
গার্হপত্য, এই কন্যাকে সতত রক্ষা করুন, ইহার জন্য ভাবি জরাক্রান্ত (অর্থাৎ দীর্ঘজীবী) প্রজা বিধান করুন ; এই কন্যা জীবিত পুত্রগণের মাতা হইয়া পতির সহিত বাস করুন এবং সৎপুত্রজনিত আনন্দ উপভােগ করুন ॥১০
হে কন্যে! দ্যুলােক তােমার পৃষ্ঠদেশ রক্ষা করুন, বায়ু এবং দিবস রজনি উরুদ্বয় রক্ষা করুন, তােমার স্তন্যপায়ী
१० -- अति जगतीच्छन्दः। अग्निर्देवता। आजाहीम विनियोगः ।
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