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मन्त्र-ब्राह्मणम् ।
तप्यमाना जजान गर्भ महिमान मिन्द्र ॥ तेन देवा असहन्त शवहन्ता सुराणा मभवच्छचौभिः ।। १६ । _ 'एकाष्टकासपसा' एक संख्यकाष्टकायाः तपसा शास्त्रोक्त विधियत् कर्मणा ' तप्यमाना' तपः कर्मवती काचित् अदितिः अखण्डनीया नित्याशक्ति: 'महिमानं' महत्वयुक्तम् 'इन्द्र ऐश्वर्यशालिनं इन्द्र नामक वा 'गर्भ' 'जजान' जनितयतो । 'तेन' इन्द्र ण अधिपतिभूतेन सह मिलित्वा “देवाः' वायादयः 'शत्र न' वृत्रादीन् 'असहन्त' पराभूतान् कृतवन्तः । ततः प्रभृति स इन्द्रः ‘शचीभिः' हलवधादिभिः स्वकर्मभिः 'अमुराणां' 'हन्ता' इति प्रसिद्धः ॥ १८ ॥ কষিত হইয়া আচরণ করি অতএব সেই কুসীদ দিব, এবং দিতেছি, জীবিত থাকিতে থাকিতেই এ শরীরে খণ-শূন্য रव ॥ १ ॥ | বিধিমত একটি অষ্টকারূপ তপোদ্বারা প্যমান কোন এক অখণ্ডনীয় অদিতি নাম্নী নিত্যাশক্তি, মহিমাশালি ইন্দ্রনামে গর্ভ প্রাদুর্ভূত করিলে, বায়ু প্রভৃতি দেবতারা সেই অধিনায়ক ইন্দ্রের সহিৎ মিলিত হইয়া বৃত্ৰাদি শত্রুদিগকে পরাভব করিয়াছিলে তদবধি সেই ইন্দ্র বৃত্রবধাদি স্বীয় ক্রিয়া রূপিণী শচীর সহিৎ বিরাজমান হইয়া অসুরদিগের হন্ত। বলিয়া প্রসিদ্ধ হইলেন্ ॥ ১৯। ॥ इति सामवेदीये मन्त्र-ब्राह्मणे द्वितीय प्रपाठकस्य
टतोय-खण्डः समाप्तः॥
१८- इन्दाणो देवना । बिष्टुप् छन्दः । स्थालो पाक होम विनियोगः ।
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