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४२ १८-१९ समवशरण ४४ ७ गणेशप्रसाद वर्णी
ज्ञान
आपका शु. चिं.गणेशप्रसाद वर्णी पृथक् हो रहा है। स्वात्मानुभव
४६ ५ उठ रहा है ४६ ९ ब्रह्मानुभव
- निवेदन -
पाठक वृन्द !
कई एक कारणों से उपरिलिखित अशुद्धियां हो गई हैं उनको आप पढ़ने के पहिले शुद्ध करके पढ़ें। जिससे यथार्थ ज्ञान लाभ से वंचित न रहना पड़े।
शुद्ध ज्ञान प्राप्ति का इच्छुकसिं. कस्तूरचंद नायक
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