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दान में सुख होता होगा इसे करके देखू ६०००) रुपया मेरे पास था सर्व त्याग कर दिया परंतु कुछ भी शांतिका अंश न पाया। उपवासादिक करके शांति न मिली, पर की निंदा और आत्मप्रशंसा से भी आनंद का अंकुर न हुआ भोजनादि की प्रक्रिया से भी लेश शांति को न पाया। अतः यही निश्चय किया कि रागादिक गये बिना शांति की अद्भूति नहीं अतः सर्व व्यापार उसी के निवारण में लगा देना ही शांति का उपाय है वाग्जाल के लिखने से कुछ भी सार नहीं।
॥ इति ॥
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