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का यही सार होना चाहिये जो रागादिक भावों का अस्तित्व आत्मा में न रहे । ज्ञान वस्तु का परिचय करा देती है अर्थात् अज्ञान निवृत्ति ज्ञान का फल है किन्तु ज्ञान का फल उपेक्षा नहीं, उपेक्षाफल चारित्र का है। ज्ञान में भारोप से वह फल कहा जाता है जन्म भर मोक्ष मार्ग विषयक ज्ञान संपादन किया अब एकबार उपयोग में लाकर उसे प्रास्वाद लो आज कल चरणानुयोग का अभिप्राय लोगों ने पर वस्तु के त्याग और ग्रहण में ही समझ रक्खा है सो नहीं। चरणानुयोग का मुख्य प्रयोजन तो स्वकीय रागादि के मेंटने का है परंतु वह पर वस्तु के संबंध से होते हैं अर्थात् पर वस्तु उसका नो कर्म होती है अतः उसको त्याग करते हैं मेरा उपयोग अब इन वाह वस्तुओं के संबंध से भयभीत रहता है । मैं तो किसी के समागम की अभिलाषा नहीं करता हूं। आपको भी सम्मति देता हूं कि सब से ममत्व हटाने की चेष्टा करो यही पार होने की नौका है जब परमें ममत्व भाव घटेगा तब स्वयमेव निराश्रय अहंबुद्धि घट जावेगी क्योंकि ममत्व और अहंकार का अविनाभावी संबंध है एक के बिना अन्य नहीं रहता। बाईजी के बाद मैंने देखा कि अब तो स्वतंत्र है
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