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ऋषि मंडल है। इस स्तोत्र में "ही" को मुख्य माना गया है जिसका वर्णन करते कहा है कि, ध्यायेत्सिताब्जं वक्रत्रान्तरष्टवर्गीदलाष्टको ।।
ॐ नमो अरिहंताणमिति वर्णानमिक्रमात ॥१॥ . भावार्थ-मुख के अन्दर आठ कमल वाले श्वेत कमल का चिंतवन करे, और उसके आठों कमल में अनुक्रम से “ॐ नमो अरिहन्ताणं" के आठों अक्षरों को एक एक कमल में अनुक्रम से स्थापित करे । कमल के भागकी केसरा पंक्ति को स्वरमय बनावे, और इन कमलों की कणिका को अमृत बिंदु से विभुषित करे, उन कणिकाओं में से चन्द्रबिम्ब से गिरते हुवे मुख कलम से सञ्चारित प्रभामंडल के मध्यमे बिराजित चंद्र जैसे कान्ति वाले माया बीज "हो" का चितवन करे । इस तरह चितवन करने के बाद कमल के पुष्प के पत्तों में भ्रमण करते आकाश तल से सञ्चारित मन की मलीनता का नाश करते हुवे अमृत रस से झरते और तालुरन्ध्र से निकलते हुवे भ्रकुटी के मध्य में शोभायमान तीनलोक में अचिंतनीय महात्म्य वाले तेजोमय की तरह अदभुत एसे इस "ही" का ध्यान किया जाय तो एकाग्रता पूर्वक लय लगाने वाले को वचन और मनकी मलीनता दूर करने पर श्रुत ज्ञान का प्रकाश होता है।
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