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स्तोत्र-मंत्र-महिमा
उपर लिखे अनुसार जो कोई इस तरह का ध्यान छे महिने तक कर लेता है, उसके मुखमें से धूम्र की शिखाएं निकलती हुई वह खुद देखता है। इसी तरह एक वर्ष पर्यन्त अभ्यास किया जाय तो वह पुरुष उसी के मुखमें से ज्वालायें निकलती हुई देखता है । इस तरह ज्वालायें देख लेने बाद सतत् अभ्यास बढाते बढाते वह पुरुष इस कोटी तक पहुंच जाता है कि, उस पुरुष को अत्यन्त महात्म्य वाले कल्याणकारी अतिशयवान भामण्डल के मध्यमें विराजित साक्षात् सर्वज्ञ भगवान के दर्शन होते हैं। ___ इस तरह परमात्मा के दर्शन हो जाने वाद इसी ध्यान को स्थिरता पूर्वक एकाग्रमन होकर निश्चय रुप से लय लगाता रहे तो परिणाम की धारा एसी चढ जाती है के उस मनुष्य के निकट दृत्ति मोक्ष मुख उपस्थित होते हैं, और वह पुरुष परम पद पाता है।
ही की महिमा अपरम्पार है, और यह ऋषि मंडल का मूल बीज है, इसकी महिमा को समझ कर ऋषि मंडल के मूल मंत्र को शुद्धतापूर्वक सीख लेना चाहिये। . आस्तिक पुरुषों को मंत्र विधान पर बहुत श्रद्धा होती है, जिसका स्पष्टीकरण करते हुवे "अनुभव सिद्ध मंत्र द्वात्रिंशिका, और योगशास्त्र" आदि ग्रन्थों में बहुत विवेचन किया
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