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चिरुवी
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विषाद । बोल्यो चरनायुध सु तौ भयो नखायुध नाद । - मतिराम नीबी परसत श्रुति परी चरनायुधधुनि श्राइ । - जसव त सिंह चरुवा – संज्ञा, पु० [फा० चखः ] प्रतिमूर्ति,
खाका ।
उदा० बसतो सदा तासु के हिरदै हिलिमिलि -- बक्सी हंसराज चल - संज्ञा, पु० [सं०] १. अनिश्चय,
चरुवा चारू ।
२ फर्क
अन्तर ।
उरा० बिथा जो बिनै सों कहै उतरु यही तौ लहै, सेवाफल ह्र ही रहे यामें नहि चल है ।
-दास
७५)
चहल
उदा० मीन औौर खंजन से अनसे अनोखे देखे कंजदल हूँ तैं ये विशेष वहियत है । --ठाकुर खसक - संज्ञा स्त्री० [देश ] १. मंद पीड़ा, हलका दर्द २. मद्य पात्र । (सं० चषक )
उदा० बदन सुधाकर सुधाकर बतायो प्राजु सेखर चकोरन की उसक बुझाइ दे । - चंद्रशेखर खसीली - वि० [हिं० चसना ] सटी हुई, चिपकी हुई ।
उदा० पलकें बिथोरी गोरी गोरी भुज मूलनि पै, कंचुकी असीली बढ़ी कढ़ी कुचकोर की । बेनी प्रवीन चहक - संज्ञा, स्त्री० [ ? ] १. चिन्ह, निशान, २. पक्षियों की आवाज ३. नशे में अधिक बोलना ।
उदा० चहचही चहकै चुभी है चोक चुम्बन की ।
२. चहकि चकोर उठे भौंर करि
- पद्माकर सोर उठे । - द्विजदेव ३. छकनि की चाहनि चहक चित रही है ।
- गंग
लूकी लगना,
चलप - वि० [सं० चपल ] चपल, चंचल । उदा० जीभ में जलप देव देखिबे की तलप, पैभूतल परी है, त्यों सुहात न तलप से रसकल सकल कलानिधि मिले न तोलौ कलानिधि मुखी चित चाइ की चलपरी ।
- देव
चलाका - संज्ञा, स्त्री० [सं० चला] बिजली, विद्यत ।
उदा० चंचला चलाकेँ बहूँ ओरन तें चाह भरी चरजि गई ती फेरि चरजन जागी सी । - पद्माकर
चलना ] भगदड़,
चलाचली -- संज्ञा स्त्री० [हिं० चलने के समय की तैयारी । उदा० हय चले हाथी चले संग छोड़ि साथी चले ऐसी चलाचली में अचल हाड़ा हूँ रहयो । भूषण चवना --क्रि० स० [प्रा० भव] कहना, बोलना, हटा छांड़ि - गंग निन्दा की
बताना ।
उदा० हँसि अँगुलि दे मुख मांहि खवं, दै कान्ह बिहान भयो । चवाव - संज्ञा स्त्री० [हिं० चौवाई ] चर्चा, चुगली, बदनामी । उदा० कीजै कहा जुपै लोग चवाव सदा करिबौ करिहैं बजमारी । - रसखानि चषमना-क्रि० स० [फा० चश्म-नेत्र का क्रिया रूप ] दृष्टिगत होना, दिखाई पड़ना । उदा० चषमति सुमुखी जरद कासनी है सुख, चीनी स्याम लीला माह काविली जनाई हे । - बेनी प्रवीन चहियत - श्रव्य० [हिं० चाहि] बढ़कर, अपेक्षाकृत ।
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चहकना - क्रि० प्र० [हिं चहक] जलन पैदा होना । उदा० फाँसी से फुलेल लागे गाँसी से गुलाब अरु गाज अरगजा लागे, चोवा लागे चहकन । -देव
चहकि चहकि डार चपला चखनि चाहें । चहचही वि० [हिं० चहचह ] बहुत सुन्दर, मनो
-- घनानन्द
हर ।
उदा० चहचही चहकेँ खुभी है चौक चुम्बन की ।
- पद्माकर
चहचही सेज चहूँ चहक चमेलिन सों बेलिन सों मंजु मंजु गु ंजत मलिन्द जाल ।
-द्विजदेव चहरना- क्रि० प्र० [हिं० चहल ] प्रसन्न होना, आनन्दित होना ।
उदा० बेनी प्रवीन विषं बहिरे, कबहूँ नहि रे गुन गोविंद गाये । - बेनी प्रवीन चहल - संज्ञा, पु० [हिं० चहला] कीचड़, पंक | उदा० सुख की टहल मुकुताहल महलवीच केसरि कपूर कीच चंदन चहल सी । --देव
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