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गदरताई
की आवाज, प्रसन्नता का शब्द | उदा० मदै उनमाद, गर्दै गदनाद, ददै मुख अंचल ।
बर्द रसबाद,
— देव १. बगा
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गदरताई -संज्ञा, स्त्री० [अ० गदर ] वत पन, बलवा होना । उपद्रव होना । २. फल श्रादि का पकने की स्थिति में होना । उदा० चोरी एक चित की फलन में गदरताई, डांक रही कारन ख़बर दरबार के । - बेनी प्रवीन गवराना- क्रि० प्र० [अनु० गद], पक्वोन्मुखः पकने के करीब, यौवन में अंगों का उभरना । उदा० गदराने तन गोरठी ऐपन आड़ लिलार । - बिहारी रोगों का बर ।
गदशत्रु ]
गदशत्र ु -
-संज्ञा, पु० [सं० शत्रु, वैद्य । उदा० गदसत्रु त्रिदोष ज्यों दूरि करें त्रिसिरा सिर त्यों रघुनन्दन के सर ।
गनीम- संज्ञा, पु० [अ० गनीम ] उदा० कहें पद्माकर त्यों दुदुभि अकबक बोल यों गनीम श्री
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गनी - वि० [अ० गनी] धनवान्, अमीर । उदा० कौन मुख लैक तोहि ऊधव पठायौ इहाँ कैसी कही वाने हाय लंक लौं गनी बने । ग्वाल
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गम के नसीब तें गनी है जैसे राज पाये, श्रासक गरीब को गुमान मनी माल क्या ।
- आलम
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- केशव
क्रि० सं० [हिं० गपकना ] खाना,
शत्रु, दुश्मन । धुकार सुनें, गुनाही है ।
- पद्माकर गपक
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गपना जाना ।
उदा० कीनो कोप कराकरि होत तहाँ सरासरि, भराभरि बोती जहाँ पहिले गपन की ।
गंग
गबदुवा - संज्ञा, पु० [बुं] बालक । उदा० चारो दिसि ते धाय गबदुवन छेकि लई -बसी हंसराज गब्जना -क्रि० सं० [?] घुसेड़ना ।
ब्रज बाला ।
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—पद्माकर
उदा० गहि गहि पिसकब्जे मरमनि गब्जै तकि तकि नब्जे काटत हैं । गब्बियान - वि० [सं० गर्व ] घमंडी, गर्वले | उाद० प्रदब्ब गब्बियान के सरब्ब गब्ब को हरे ।
- पद्माकर
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गयन -- संज्ञा, पु० [सं० गगन] आकाश । उदा० जहँ स्तनसेन रण कहँ चलिब हल्लिव महि कंप्यो गयन । - केशवदास
गयारी- -संज्ञा, स्त्री० [अ० गियार] १. धर्म चिह्न जो हर समय पास रहे, यथा जनेऊ यादि । २. सलीब या यहूदियों का पीला वस्त्र जिसे वे लोग कन्धे के पास कपड़ा में सिला रखते हैं । उदा० न्यारी करौ सारी के गयारी सी प्रवीन बेनी, बचन न देहों तन बसन में गोपरी । - बेनी प्रवीन गरई - वि० [सं० गुरु ] १. भारी २. धृष्ट,
बदमाश ।
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१. समधी समधी मिलनि, गोप गरई सभा, प्रभा प्रानन्द कछु और आजै । नागरी दास उदा० २. ज्यों उनको तू बकावत मोंहि सों आई बकावन ह्र' गरई । -केशव गरज — संज्ञा, पु० [सं० गर्व] घमंड, गर्व, अभि
मान ।
उदा० निरखि सौति जन हृदयनि रहे गरउ को ढंगना ।
-दास
गरगना
-संज्ञा, पु० [?] कीड़े । उदा० भरत सीस तैं राधि रुधिर डोलत । छुधा छीन प्रति दीन कलोलत
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गरबत
कृमि डारत गरगना कंठ व्रजनिधि
१. समूह, भुंड
गरट- -संज्ञा, पु० [सं० ग्रथ ] २. गरिष्ट भारी । उदा० जानिये न कौन हेतु मोहन सखा सों कहयो तुम सब रहो जाय गोधन गरट में ।
—रघुनाथ
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२. हैबर हरट्ट साजि गैबर गरट्ट सबै पैद के ठट्ट फौज जुरी तुरकाने की । भूषण गरद- -संज्ञा, पु० [ ? ] एक प्रकार का रेशमी
कपड़ा ।
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उदा० सेमर फूल तूल के रये । गरद गात मखमल मढ़ि लए । - केशव गरपरा - संज्ञा, पु० सेवक ।
[देश० ] दास, नौकर,
उदा • हों तो सदा गरपरा तेरो परा भरो दधि पाऊँ —बक्सी हंसराज -संज्ञा, पु० [सं० गर्व ] गर्व, अहंकार । उदा० सील के सुभाइनि सो महा सुखदायनि सो कहूँ काहू कबहूँ करत गरबत की ।
गरबत
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देव