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खलित
(
५४
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खासा
हलित-वि० [सं० स्खलित] रीते, अर्थशून्य, खाढ़-संज्ञा, पु० [हिं० खाड़] गड्ढा, गर्त । निरर्थक, अर्धस्पष्ट ।
उदा०ढरस हास के कूप किधौं पति प्रेम के उदा० खलित बचन, अध खुलित दृग,
पूजन को यह खाहै।
-रघुनाथ ललित स्वेद -कन- जोति ।
खाती-संज्ञा, स्त्री० [सं० खात] खुदी हुई भूमि, अरुन बदन छबि मदन की खरी छबीली ! खाने जहाँ सोना आदि प्राप्त होता है। २. होति ।
-बिहारी बढ़ई। खलीत--संज्ञा, स्त्री० [हिं० खरीता] थैली, जेब ।। उदा० सरना जड़ का सरसाती मिली, चित सूम, उदा० सीता कौं संताप, कि खलीता उतपात की,
को सोन की खाती मिली।
-तोष कि काल को पलीता प्रल काल के प्रनल खावर-संज्ञा, पु० [बुं०] गड्ढा, सूराख । की।
--सेनापति उदा १. भूल बिसर जिन डारौ कबहूँ कोंदर खलीता-संज्ञा, पु० [अ० ] लिफाफा, थैली ।
खदरन हाथू ।
-बकसीहंसराज उदा० खोल खलीतो लिख्यो यह बाँचत भाजियो
नाहीं तौ न हील होन देरी झील झाबरनि, राति न बीतन पावै ।
-चन्द्रशेखर
ग्रीष्महि राखु खाली भाखु खल खादरनि। खवास-संज्ञा, पु० [अ० खवास] १. गुरग, धर्म,
-देव विशेषता २. राजमहल की वह दासी जो राजा खाम--वि० [फा० खाम] १. अनुभवहीन, कच्चा, के पास प्राती जाती हो।
अपुष्ट, अविवेक २. चिट्ठी का लिफाफा, उदा० ऐसै जिय भास तें, जु लाज के खवास तें, लिफाफे में चिट्ठी का बंद रहना [संज्ञा, पु., कहै न खवास तें, कि उठि जाउ पास तें । हिं० खामना]
वाल | उदा० १. धाम की न धनि की, न धन की न खवासो-संज्ञा, स्त्री० [अ० खवास] नौकरी,
तन की, तपन की न पात, बात कीन्ही चाकरी, खिदमतगारी ।
सब खाम की।
-ग्वाल उदा० दासी सों कहत दासी, यामें कौन ताहिनी
२. बाँचति न कोऊ प्रब वैसिये रहति खाम है, उनकी खवासी तौ न कीनी जोरि कर
जुवती सकल जानि गई गति बाकी है। -रवाल
-द्विजदेव खसमाना--संज्ञा, पु० [भ० खसम] पति, प्रिय- | लारिक-संज्ञा, पु० [बुं०] छोहारा।
उदा० खारिक खात न दारिम दाखहु, माखनहू सह उदा. कहै कबि गंग हूल सागर के चहूँ कूल, । मेटी इठाई।
- केशवदास कियो न करें कबूल तिय खसमाना ज । खारिज-वि० [अ०] अलग की हुई, पृथक,
-गंग भिन्न । खहिनि-संज्ञा, पु० [हिं० खये-] भुजमूल, खम। उदा० पानी गये खारिज परबाल ज्यों पुरानी है। उदा० रोकि रहे द्वार नेग माँगन अनेग नेगी ।
-पदमाकर बोलत न ख्याल, व्याल खोलत खहिनि के। खाली-क्रि० वि० [अ०1सिर्फ, केवल ।
-देव | उदा० बेलिनि नवेलिनि के केलि-कुंज पुंज पाली ! सासरि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० खंखाड़] १. अस्थि । खाली बनमाली बिन काली से डसत है पंजर, कंकाल ०. खोखला, सुराखदार [वि.]।
- कुमारमणि उदा० १. स्वान मसान में खैचिहैं खाखरि
कहा कहों प्राली खाली देत सब ठाली. जंबुक खोहनि मैं खुपरी की।
पर मेरे बनमाली को न काली तें छरावहीं। -देव
-रसलानि २. मड़हो मलीन कुंज खांखरो खरोई खासवान--संज्ञा, पु० [अ० खास+फा० दान] खीम।
-पालम पान रखने का पात्र विशेष । खाड़ो-संज्ञा, पु० [सं० खात] गड्ढा, गर्त ।। उदा० खासान सौं लै दई, बिरी खवासिन चारु । उदा० कौने विधि कुबिजा 4 पीढ़िबे को बनि
-गुमान मिश्र पाव खाट काटि देत है कि खाडो खोदि 'खासा-संज्ञा, पु० [अ० खासा] १. एक प्रकार लेत हैं।
-देव का महीन श्वेत सूती वस्त्र २. राजभोग ३.
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