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-गंग
उद्दित
उबठना उहित-वि० [सं० उद्यत] उद्यत, प्रस्तुत, तैयार
खाइये, सिंधु सोइ है जहाँ जल खाइये । उदा० रहयो द्यौस जब व घरी, साजि सकल
-रघुनाथ सिंगार । उद्दित व अभिसार को, बैठी
उपविक्रि० वि० [बुं०] पसन्गीस, अपनी मर्जी से परम उदार।
___- देव
। उपदि बरयो है यहि सोभा अभिरत हो । उनदोही--वि० सं० उन्निद्र] उनीदीं निद्रा ग्रस्त
-केशवदास उदा० पारयो सोरु सुहाग को इनु बिनु ही पिय उपधि-क्रि० वि० [बुं०] धोखे से, छल से । नेह । उनदौंही अँखियाँ ककै, के अलसौंहीं
उदा० किधौं यह राज पुत्री बरही बरी है किधौं देह ।
- बिहारी
उदधि बरयो है यह सोभा अभिरत है। उनमाथना- क्रि० स० [सं० उन्मथन] मथना,
-केशव विलोड़ना।
उपनये---वि० [देश॰] नंगा, बिना जुता के । उदा० जल तें सुथल पर थल तें सुजल पर उथल
उदा० जिन दौरियो उपनये पावन हरुबाइल के पुथल जल, थल उनमाथी को ।
पाछे । .
-बक्सी हसराज - बेनी
उपसीजना-क्रि० प्र० [सं० उपयेज] अधीन उनमानना - क्रि० अ० [सं० अनुमान] अनुमान
होना, वश में होना । करना, संभावना करना।
उदा० आज कहूँ उपसीजि न जाहुगी, जोन्ह तें उदा० (क) तनु कंबु कंठ त्रिरेख राजति रज्जु सी
जीति हौ मेरी गोसाइन । उनमानिये,
. -केशव
उपाना- क्रि० स० [सं० उत्पन्न] उत्पन्न करना (ख) राजा राइ राने उमराइ उनमाने, उनमाने निज गुन के गरब गिरबीदे हैं ।
पैदा करना ।
उदा० ही मनते विधि पुत्र उपायो। जीव उधारन -देव मन्त्र बतायो।
- केशव उनरना-क्रि० प्र० [ सं० उन्नरग-ऊपर जाना] १. उठना, उमड़ना २. कूदना, उछलना,
उपावन-संज्ञा, पु० [सं० उपाय] रक्षण, रक्षा
उदा० जब एक समै प्रभु भावन बावन, सन्त । कूदते हुए चलना।
उपावन देह धरी। उदा० २. मेरो कहयो किन मानती मानिन,
-गंग प्रापुही तें उतको उनिरोगी।
उपाहन-संज्ञा, पु० [सं०] जूता, पदत्राण । -देव
उदा० धोती फटी सी टी दुपटी अरु पाय उपाहन उनाना-क्रि० स० [सं० उन्नमन] लगाना, प्रवृत
की नहिं सामा ।
-नरोत्तमदास करना २. भरना, रंजित करना ।
उपैजाना-क्रि० प्र० [देश॰] उड़जाना । उदा० एकनि भेटि दुहुँ भुज देव हियो ग अंजन
उदा० देखत बुरै कपूर ज्यौं उप जाइ जिन, बाल । रंग उनैक। ---देव
-बिहारी उनाव-संज्ञा, पु० [सं० उन्नमन] उत्तेजना,
उफाल-संज्ञा, पु० [देश॰] बड़ी लम्बी डग, जोश ।
छलांग मारते समय की डग । उदा० बनावै उनावै सुनावै कर रक्खे । रबाब उदा० जल जाल काल कराल-माल-उफाल पार बजावै सु गावै हरक्खे । -पद्माकर
धरा धरी ।
-केशव उपंगी-संज्ञा, पृ० [१] नसतरंग नामक वाद्य
उबटना-क्रि० अ० [हिं० उचटना] चित्त से उदा० पगि पगि पुनिपुनि खिन खिन सुनि सुनि
उतर जाना, अरुचि होना, उदासीन होना। मृद मृद ताल मृदंगी मृहचंगी झांझ
उदा० देखि कहाँ रहे धोखे परे उबटौगे ज देखौ उपंगी।
-दास ब देखहु प्रागे ।
- केशव उपखान-संज्ञा, पु० [सं० उपाख्यन] १. कहावत
उबठना-क्रि०अ० [सं० उद्व जन] अरुचि उत्पन्न २. पुरानी कथा।
होना, उदासीन होना । उदा० है जग में उपरवान प्रसिद्ध सुनो रघुनाथ, उदा० अलंकार सो सार है उबिठै सुनत न वर्ष । की सौंह सुनाइयो । वृक्ष सोई है जहाँ फल
-रघुनाथ
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