________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अलिख्या
अवरेख अलिखया-वि० [सं० अलेख] अलेख, अनगिनत | अलं-संज्ञा पु० [सं० प्रालय] प्रालय, घर २. अगणित ।
अलि, सखी। उदा० उत्तम गुन निधान, निगुन गुन-निधान, उदा० दूरि करौ मधु मालती चुरकै घेरे हैं जो गुननि तिहारे बँधी औगुन अलिख्या हौं
दिसि चारि अलंकी।
-रघुनाथ -देव
प्रलोक-संज्ञा, पु० [सं० अ + लोक = यश] अलीन-संज्ञा, पु० [सं० आलीन] द्वार के चौखट अपयश, कलंक, बदनामी। की खड़ी लकड़ी, दालान या बरामदे के किनारे उदा० कैसो परलोक, नरलोक बरलोकनि मैं, का खम्मा ।
लीनौं मैं अलोक, लोक लीकनि त न्यारी हौं । उदा० दौरत दरीन को अलीन की अलीन लगि
_ --देव कटि खीन होन लागी, चिन्ता चितभंग
देवजू कौन गनै परलोक में लोक मेंकी ।
आपु अलोक लिगारिये ।
-देव -वाल अलोलिक-वि० [सं०+लोल] स्थिर, अचंचल । अलूला-संज्ञा, पु० [हिं० बुलबुला] बुलबुला उदा० लोल अमोल कटाछ कलोल अलोलिक सों २. भभूका ३. लपट ४. उद्गगार
पट अोलि के फेरे ।
-केशव उदा० १. बानर बदन रुधिर लपटाने छवि के
प्रलोकनि-संज्ञा, स्त्री [सं० अवलोकन ] अवउठत अलूले ।
-हनुमान __ लोकनि, दृष्टि, आँख । अलेखन-क्रि० स० [सं० आलेखन] लिखना, उदा० प्रिया अलोकनि में निरखि, पीक अरुन बर चित्र बनाना ।
जोति, तन दीपति दिन दीप सब, सब उदा० मंदिर की दुति यों दरसी जनु रुप के पत्र
सौतिन ही होति ।
-मतिराम अलेखन लागी ।
अल्लाना-क्रि० प्र० [सं० अर=बोलना ] -सोमनाथ
चिल्लाना, बोलना ।। अनेखी-संज्ञा, स्त्री [सं०अ+लेखी देवाङ्गना] उदा० राम कहै चकित चुरैलै चहुँ अल्लै, त्यों राक्षसी, रजनीचरी, निशाचरी ।।
खबीस करि भल्लै चौहैं चकित मसान को। उदा० लेखी मैं अलेखी मैं नहीं है छबि ऐसी
-राम कवि औ, असमसरी समसरी दीबे कों पर लिये अवगरी-वि० [प्रा० अवगर, सं० अप+ कृ ]
-दास
अपकारी, अहित करने वाला। . अलेल-संज्ञा, स्त्री [देश] १. प्रचुरता, अधिकता उदा० आवन दै होरी धीरी रहि ।। २. अत्यधिक, अतिशय [वि॰] ।
कहा नचावति मोहन अवगरी लैहीं दाव उदा० लोहू के अलेल में गलेल देत भूतभिरै, रु'डन
भावतो गहि ।
-घनानन्द को प्रेत पी पिसाच सहचारी हैं।
अवधि-वि० [सं०] १. अत्यंत, बहुत ही २.
-चन्द्रशेखर लोह के अलेल गंग गिरजा गलेले देत,
सीमा, हद (संज्ञा)।
उदा० चोंथ चोथ खात गीध चर्ब मुख चोपरी ।
---गंग
तो तन अवधि अनूप रुपु लग्यौ सब जगत को। २. खेलिके रंग अलेल चढ़ी छबि, कैसी लगै
मो दूग लागे रूप, दृगन लगी अति अटपटी ।
-बिहारी गहि घूघट प्रावन ।
-नागरीदास कंचन की बेलि सी अलेल एक सुन्दरी ही
अवर-संज्ञा, पु० [सं० आमलक] १. ऑवला, अंग अलबेली गई गोकुल की गैले हैं।
२. निम्न, अधम ।
-ग्वाल । उदा० बेल मति कीजे सिरसाबित तिहारे चकअलेली-वि० [हिं० अलेल] अत्यधिक, अतिशय
बास मैन पैहै अवर रत बिहाल है। उदा० दीह दुति रेली अलबेली की प्रलेली अब,
-नंदराम फैली दीप दीपन लौं झलक झरोखा तें। अवरेख-संज्ञा, पु० [सं० अवलेख ] १.चित्र, २.
-बेनी प्रवीन । शोभा. सौन्दर्य ।
For Private and Personal Use Only