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रुखाये
मौन रही
उदा० सुनो इतँ रँगभौन चित चित चकि चौंकि चहूँ रुख । —देव रुखाये - वि० [फा० रुख ] रुख किये हुए, लगाए हुए । उदा० देवान्तक नारान्तक अंतक त्यों मुसकात विभीषरण बैन तन कानन रुखाये जू ।
केशव
रुच्छवि० [सं० रुक्ष] रुष्ट, क्रुद्ध | उदा० पटकत पुच्छ कच्छ कच्छ पर सेस जब, रुच्छ कर मुच्छ पर हाथ लाइयतु है ।
- पद्माकर
रुजिगार — संज्ञा, पु० [फा० रोजगार ] धंधा, पेशा, व्यापार ।
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उदा० रावरी रीति पै रीभि के हो रुजिगार रच्यो शरणागत घावन | - रघुराज रुजुक - संज्ञा, पु० [श्र० रुजून- श्राकर्षण, प्रवृत्त ] चाह करने वाला, आकृष्ट होने वाला । उदा० उठि गयौ प्रालम सो रुजुक सिपाहिन को उठि गौ सिंगार सबै राजा राव राने को । भूषण रुझना - क्रि० म० [सं० रुद्ध] पूरा होना,
सुलझना ।
उदा० कवि ग्वाल अगस्त की शक्ति छई यह ईसुरही पेरु तो रुभं ।
-ग्वाल
रुतनि-संज्ञा, स्त्री० [?] कांति, चमक । उदा० सुतनु अनूप रूप रुतनु निहारि तनु, तुला में तनु तोलति त्रसति है । रुति संज्ञा, पु० [सं० रुत] ध्वनि, शब्द पक्षियों का कलरव । उदा० घटा घहराति बीजु छटा छहराति, अधिराति हहराति, कोटि कीट• रुति रुंज लौं । —देव रुपना — क्रि० प्र० [सं० रोधन] रुकना, रुकावट होना ।
उदा० सोहै चहूँ दिसि में धवली पवलोकित मालनि मैजु रही रुधि ।
रूपना- क्रि० प्र० [हिं० रोपना, ] १. अड़ना २. रोपाजाना, जमीन में
प्रतनु देव २.
बेनी प्रवीन डटना,
लगाया
जाना 1
उदा० पर्यो जोर विपरीत रति रूपी सुरतिरन धीर । करत कोलाहल किंकिनी गह्यौ मौन मंजीर । - बिहारी दरकना- क्रि० प्र० [हिं० लोल] हिलना ।
)
खरा
उदा० लाल लसे पगिया नवलाल कँ, पोत झगा तन घूमे घुमारो । माल मनोहर मोतिन की, रुरकै उर के मधि, आनंद भारौ । -नागरीदास दरना क्रि० अ० [हिं० रूरा] १. शोभित होना, अच्छा लगना २. हिलना, डोलना [सं० लुलन ] ।
उदा. १. सहज हसौंही छबि फबति रंगीले मुख दसननि जोति- जाल मोती माल सी रुरें ।
-घनानन्द
२. सुरंग तन चीर धीर उर रुरत हारावली बिबिध भूषन सजे माँति माँतिन भेली । — ब्रजनिधि थोड़ा-थोड़ा माँगना ' चरितन चित राखौ, कलेऊ रुँगे खात हैं ।
- आलम
रुदना - क्रि० सं० [हिं० रौंदना ] कुचलना, किसी चीज को पैरों से दबाना |
गना - क्रि० सं० [बुं ] उदा० सेवा सावधान देव कहा भयो कान्ह जु
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उदा० ग्वाल कवि बूंदें ढूंदे रुदें बिरहीन होन नेह की नमूदे ये न हुँदै हैं गमाके सो ।
- ग्वाल
लझना — क्रि० अ० [हिं० उलझना ]
उलझना ।
उदा० रीझ की रहनि में अबुझ कहा रु
रूढ़ि - वि० [सं०] दृढ़, पक्की । उदा० प्रौढ़ि रूढ़ि को समूढ़ गूढ़ गेह में गयो । शुक्र मंत्र शोधि-शोषि होम को जहीं भयो । - केशव
फँसना
और गूढ़ कहा कहीं मूढ़ हौ जाहु प्रौढ़ रूढ़ि केसौदास नीके हो । रूप -- संज्ञा, पु० [ सं० रूप्य ] १. चांदी २. सौन्दर्य ।
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रूरा - वि० [सं० रूढ़ = प्रशस्त २. श्रेष्ठ, उत्तम ३. सुंदर उदा० १. छोड़े तो राधिका सी तौ कुबरी प्रेम के रूरे ।
जू ।
-प्रालम
२. लोभ लगे हरि रूप के करी जाय ।
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उदा० १. रूप की रवाई जातरूप की निकाई मैन पाई रुचिराई कोटिवार बदले मये ।
- नंदराम साँट जुरि - बिहारी
१. बहुत बड़ा
जू ? जानि केरि जाने —केशव
ठकुराइनि राखेँ - रघुनाथ