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बरे
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रान के इसारे लेत बान के उचट्टा से ।
- पद्माकर
राबरे – संज्ञा, पु० [हिं० रबड़ी] बसौंधी, दूध को गाढ़ाकरके लच्छेदार बनाना ।
उदा
माखन मलाई खांड़ खीरि सिखिरिनि बही मही दूध दही मिले राबरे बरे फिरें । - देव रामचंगी - संज्ञा, स्त्री० [?] एक प्रकार की तोप उदा० चलै रामचंगी धरा में धर्मकै सुने तें । श्रवाजें बली बैरि सके । रामा - संज्ञा, स्त्री० [सं०] १. लक्ष्मी २. राधा, ३. रुक्मणि, ४. स्त्री । उदा० १. काँपत सुरेस सुरलोक खल मल अधिक परी है उर
- पद्माकर
हहलत अति, रामा के ।
- नरोत्तमदास
रारे लुग्ग संज्ञा, पु० [हिं० रार = लड़ाई + लोग ] युद्ध करने वाले, युद्धार्थी, सेना | उदा० रारे लुग्ग राखि रखवारे दुग्गवारे रिपु लरजे अपारे सुने गरज नगारे की ।
- सोमनाथ राहबर - संज्ञा, पु० [हिं० राह + सं० वारण] रास्ता रोकने वाला, लुटेरा । उदा० छूटे बार टूटे हार विषमेषु राहबर फैलि फूलि लूटे सुख बूझे तें झुकति हैं । — गंग रावल संज्ञा, पु [सं०] रनिवास, राजमहल,
२. राजा ।
उदा० रावल राधे बिना न रह्यो परं रूप की रीझन ज्यौ जरिहै गो । - गंग राहदारी - संज्ञा, स्त्री० [फा०] चौकीदारी, २. सड़क का कर ३. चुंगी, महसूल उदा० ग्वालन तें गोपन तें, गहकि गहकि मिले, गली में चली है भली बात राहदारी की ।
- ग्वाल
राह पड़ना क्रि० सं ० [फा० राह + हिं० पड़ना ]हि० मुहावरा - डाका पड़ना, लूट पड़ना । उदा० कहै पदमाकर त्यों रोगन की राह परी, दाह परी दुख्खन में गाह प्रति गाज की ।
ततकाल ।
रिख्यो — संज्ञा, स्त्री० [हिं० रेखा ।
—पद्माकर
रिंदगी – संज्ञा, स्त्री० [फा० रिंद] उदण्डता, निरंकुशता, चपलता ।
उदा० तब माधवा उर शंकि के मरि अंक लीन्ही बाल । शरमिंदगी उर धान कीन्हीं रिंदगी - बोधा रेखा ] रेखाङ्कन,
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रुख
[?] खसकना,
! उदा० चित्र भई हौं विचित्र चरित्र चित्त चुभ्यो अवरेख रिख्यो से । -देव रिरकना-क्रि० प्र० सरकना २. गिड़गिड़ाना | उदा० प्यौ लखि सुंदरि सुंदरि सेजतें यों रिरकी थिरकी थहरानी । —पद्माकर रिलना - क्रि० अ० [हिं० रेलना ] मिल जाना, तन्मय हो जाना, घुस जाना ।
उदा, उज्वल जुन्हाई में कन्हाई जमुना पुलिन बाँसुरी बजाई रीभि रसही रिलिगई ।
— देव
स्त्री० [ पंजा०] युद्ध,
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रिस - संज्ञा, बरावरी । उदा० लक्ष्मण शुभ लक्षण बुद्धि बिचक्षण रावण सों रिस छोड़ि दई । —केशव
रीरी — संज्ञा, स्त्री० [?] पीतल । उदा० पीरी होत रोरीन रीस करें कंचन को, कहाँ काग-बानी कहाँ कोयल की ढेर है । -भूधरदास रोस – संज्ञा, स्त्री० [पं० सं० ईर्ष्या ] बराबरी, स्पर्द्धा २. डाह ।
उदा० पीरी होत रोरी पै न रीस करें कंचन को, कहाँ काग-बानी कहाँ कोयल की टेर है । भूधरदास
रुज - संज्ञा, पु० [देश० ] एक तरह का बाजा | उदा० घटा घहराति बीजु छटा छहराति, अधि राति हहराति. कोटि-कीट-रुति रुजलौं ।
- देव रु जक - संज्ञा, पु० [देश०] एक प्रकार का
वाद्य ।
उदा० गुंजत ढोलक रुजक पुंज कुलाहल काहल नादति तामे - देव दधती - संज्ञा स्त्री० [सं० मरुधती] एक छोटा तारा जो सप्तर्षि मंडलस्थ वशिष्ठ के पास पड़ता है, २. मुनि वशिष्ठ की स्त्री का नाम । उदा० १. रुधती के नखत लौ लखत न जो लों तौलों झखत नगीच मीच बैठी मैनसर पै । -पजनेस रुकुम- -संज्ञा, पु० [सं० रुक्म] स्वर्ण, सेना । उदा० दीनो मैं तुकुम मंत्र दुकुमनि ठेलति है रुकुम की बेली सी नबेली चारु चेली जू ।
—तोष रुख - अव्य [फा०] ओर, तरफ, २. कपोल, मुख [संज्ञा, पु०] i
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