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मसमुंद
महाकवि मसमुंद--वि० [मस+ मूंदना] धक्कमधक्का , | महूख-संज्ञा, पु० [सं० मधूक] शहद, मधु । ठेलमठेला ।
उदा० केसव ऊख महूखहु दूखत पाई हाँ तो पह उदा०-तबही सूरज के सुभट निकट मचाओ
छाँड़ि जिठाई।
-केशव _ ढुंद । निकसि सकै नहिं एकहू कस्यो कटक छिनक छबीले लाल वह जौ लगि नहि मसमुंद ।
बतराइ, ऊख महूख पियूख की तौ लगि मसरना-क्रि० स० [हिं० मसलना] मसलना,
भूख न जाइ।
-बिहारी रगड़ना ।
महेरो--संज्ञा, पु० [बुं०] मट्ठा में पकाया हुआ उदा० कुँवर कान्ह जमुना मैं न्हात । मसरत मात । सुभग साँवरे गात ।
-घनानन्द उदा० ताकों तू ले जाय भियारे सामर दूध मसि भीजना-क्रि० सं० [सं० मसि+हिं० महेरो।
-बकसी हंसराज भीजना] मूछों की कालिमा का उभरना, युवा- मसना-क्रि० स० [हिं० मसलना] मसलना, वस्था में मूछों के बाल का थोड़ा-थोड़ा झल- मलना, हाथ से रगड़ना । कना।
उदा० रुकिय नहिं नेक निहारि गुपाल सु देखि उदा० ह्याँ इनके रस भीजत से दग, ह्वाँ उनके
मसोसनि हो मसिय ।
-गंग मसि भीजत प्रावै।
- पद्माकर मसवत-वि•[सं० मशक+वत् (प्रत्य॰)] मशक मसीसी-वि० [हिं० मसलना, अ० मिसात] की भांति, मच्छड़ की तरह। मीजी हुई, मसली हुई।
उदा. इन्द्र को गरब गरे सब ब्रज राख्यो तरे, उदा० भानुनंदिनी की तकि तकि कै तरंगे तेज,
धन्य रे कन्हैया हँसै गिरिधरे मसवत । सोवै सेज सौरम मजेज की मसीसी सी।
-दूलह -प्रवाल महना-क्रि० स० [हिं० मथना] मथना । महताब-संज्ञा, स्त्री० [फा०] १. मसाल, उदा. कवि गंग कहै सुनि साह अकबर छाछ महताबी २. चाँदनी ३. चन्द्रमा ।।
- मिली यह दूध महा ।
-गंग उदा० १. महताब चमकंत रुचि रंजक उड़त महमही-वि० [हिं० महक] सुगंधित। चपला सी तड़पंत घहरंत करि तोर। उदा० महमही मंद मंद मारुत मिलन तैसी गह
- चन्द्रशेखर
गही खिलनि गुलाब की कलीन की। महबूबी-संज्ञा, स्त्री० [अ० महबूब] माशूकपन
-रसखानि प्रियता, वत्सलता ।
महरिम-संज्ञा, पु० [अ० महम] मित्र, दोस्त, उदा० ऊबी सी रहति अरविन्दन की प्राभा- परिचित । महबूबी मृगछौनन को छाम करियतु है। उदा० मेघपिमघ धूम हौं बिरहिन तालिबइल्म ।
- देव
महरिम बेमालूम बिरह किताब पढ़ावसी । महर-संज्ञा स्त्री० [फा, मेहर] कृपा, दया।
-बोधा उदा० ग्वाल कवि लाल तौसों जोर कर पूछत महरेटी-.संज्ञा, स्त्री० [हिं० महरेटा] राधा। हौं, साँच कहि दीजी जोपै मो पर महर उदा० बीते फागू प्रोसर के बिदा कीन्ही बार वधू
काल्हि महरेटी करि ही में महादुख को। महराना-क्रि. स० [हिं० मह] सुगंधित करना
-रघुनाथ सुगंध उत्पन्न करना।
महाअली-संज्ञा, पु० [सं० महापलि] बहुत बड़ा उदा० झहराती समीर झकोर महा महराती पावत, भँवर। समूह सुगन्ध उही ।
-बेनीप्रवीन उदा० मौहनि भवर मध्य तरि निकसत यात. महाबथ्य-संज्ञा, पु० [हिं० महावत] महावत, महाअली चूंघट ते टरतिन टारी है।
हाथीवान । उदा० चढ़ हैं जिन्हों पै महाबथ्य मारे । महाकवि-संज्ञा, पु० [सं०] बड़े वैद्य, चतुर लसै यों किलाएँ मनौ अत्तिवारे ।
चिकित्सक। -पद्माकर | उदा० चूरन पाँच महाकवि बिधि बनवाइ रखाये।
-ग्वाल
गंग
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