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मनसना ( १८४ )
मरगजा मनसना-क्रि० सं० [हिं० मानस] संकल्प मयंकज-संज्ञा, पु० [सं०] चन्द्रसुत, बुध । करना । २. इच्छा करना, इरादा करना ।
उदा० अंक मयंकज के दल पंकज, पंकज में मनो उदा० १. देखिबे कौं फिरै एक देवता सी दौरि
पंकज फूले।
-देव . दौरि, देवता मनाइ दिन दान मनसति हैं। । मयंकबधू-संज्ञा, स्त्री [सं०] चन्द्र बधू, बीर
-केशव बहूटी नामक लाल बरसाती कीड़ा। मनसाकर-संज्ञा, पु० [सं०] १. कल्पवृक्ष, उदा० ब्रजबाल नदी उमही रसखानि मयंकबधु २. कामधेनु ३. मनवांछित फल देने वाला।
दुति लाजत है।
-रसखानि उदा० बहु शुभ मनसाकर, करुणामय अरु सुर त- मय-संज्ञा, पु० [सं०] मय नाम का शिल्पी रंगिनी शोभ सनी।।
-केशव दैत्य । मनसूबी-संज्ञा, स्त्री० [अ० मंसूब:] १. इरादा, उदा० हंस गति नाइक कि गूढ़ गुनगाइक कि इच्छा, ख्वाहिश २. साजिश ।
श्रवन सुहाइक कि माइक हैं मय के। उदा० डूबी बन वीथिन चकोर चतुराई मनसूबी
-केशव तुरगन की तमाम करियतु है। --देव मयमंत - वि० [सं० मदवन्त] मदयुक्त मदोन्मत । मनित--संज्ञा, स्त्री० [सं० मणि] मणि एक उदा० केकी कुल कोकिल अलापै कलकंठ धुनि __ कीमती पत्थर ।
कोलाहाल होत सुकपोत मयमंत को । उदा० कंकन भनित अगनित रव किंकिनी के, नूपुर
-देव रनित मिले मनित सुहात है। --देव मयारि-संज्ञा, स्त्री॰ [देश॰] वह डन्डा जिस पर मनेस-संज्ञा, पु० [सं० मन +ईश] मन का हिंडोले की रस्सी लटकती रहती है। स्वामी, कामदेव ।
उदा० फूलन की मयारि और मरुवे यों फूलन उदा०--दासजू बादि जनेस मनेस धनेस फनेस
के फूले मोर तोता अलि झूमक' मरोरे मैं । गनेस कहैबों। -दास
-ग्वाल मनोजतरु-संज्ञा, पु० [सं०] कल्पवृक्ष, स्वर्ग का मयूखहिम-संज्ञा, पु० [सं० मयूषहिम] चन्द्रमा,
एक वृक्ष जो अभीष्ट कामना की पूर्ति करता है। हिमकर, शशि, उदा० सोधो सुधा बिन्दु मकरंद सी मुकूत माल, उदा. मूरख मयूखहिम हुमकि हुमकि हनै । लपिटी मनोज तरु मंजरी सरीर है।
-पालम मम्या-वि० [सं० मान्या] सम्मनानीय, प्रादरणीय, मयूषमनि मानिक-संज्ञा, पु० [सं० मयूषमरिण - सम्मान्य ।
सयं+मनि-मणि-सूर्यकान्त मणि] । उदा. कहूँ जोगी वेष कै जगावत प्रलेख कहें १. सूर्यकान्तमणि । सन्यासी कहाये मठ मन्यासी ठयो फिरै। उदा० ऊषम निदान ही मयूषमनि मानिकनि,
-देव
अगनित चामीकर अगिनि तचाई सी । ममाते-वि० [हिं० मैमंत] मस्त, मैमंत ।।
-देव उदा. कहै रघुनाथ मनमानिक सों मागे लेत मानै मरक-संज्ञा,स्त्री० [देश॰] उत्तेजना, बढ़ावा. जोश
। न ममात गज कानन हृदन के । -रघुनाथ उदा० पर तें टरत न बर परे दई मरुक मनु ममारखी.-संज्ञा, स्त्री० [फा० मुबारक] बधाई । । मैन ।
--बिहारी उदा० देत ममारखी बारहिबार करें सिगरी सब मरकना-क्रि० प्र० [अनु॰] टूटना, दबाव में ओर सलामैं ।
-चन्द्रशेखर __ में पड़ कर फटना । ममोल-संज्ञा, पु० [हिं० ममोला] ममोला, खंजन उदा० ग्वाल कवि तरकि परे री कंचुकी के बंद नामक पक्षी ।
अधिक उमंगन से अंगहू मरकि परे । उदा० येहो ममोलदृगी दुहुँ हाथनि गोरे उरोजनि
-ग्वाल को धरने दे।
-तोष मरगजा-वि० [हि० मलवा ] शिकन पड़ा ममोला-संज्ञा, पु० [?] खंजन पक्षी ।
हुप्रा । मला हुआ, गीजा हुआ २. मलिन । उदा० मीन से ममोला से मयंक मृग छौना ऐसे उदा० मरगजे बागे रस पागे नैना लागे पावै, नैन पुतरीन अलि सावक बिसेखे हैं।
आगे रही पाग धेसि जागे लाल जामिनी -गंग।
--मालम
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