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भावार ( १७६ )
भूभुज रोस में दागी । जानि के और तिया हिय । भुजमूल---संज्ञा, पु० [सं०] पखौरा, खए। मैं झुकि भावन कों समुझावन लागी । उदा० बढ़ति निकसि कुचकोर रुचि कढ़त गौर
-सोमनाथ भुजमूल ।
-बिहारी भावरि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० भावना=पसंद भुमिया-संज्ञा, पु० [सं० भूमि+हिं० इया होना] पसन्दगी का भाव ।
(प्रत्य)] जमींदार, भूस्वामी । उदा० भावरि-अनभावरि-भरे करौ कोरि उदा० ऐसो राज रसा मह करै । भुमिया के बकवादु ।
-बिहारी नाके भूव धरै।
-केशव भावलिया-संज्ञा, पु० [बुं० भावली] भावली, भुरते-वि० [सं० भूरि+हिं० ते-से] भूरि, _बहाली, धोखा ।
__ अत्यधिक, बहुत ज्यादा । उदा० श्रवनन सुनत बात यह नीकी सब को दे उदा० रति बिपरीति रची जोति रति रतिमावलिया। प्रति ही चटक मटक सों
पति सुकुमार परम सो भरी श्रम भुरते । चितवत पायो चलि स्यामलिया ।
-रघुनाथ -बकसीहंसराज भुरसना - क्रि० स० [हिं० भुलसना] गरम राख भास-संज्ञा, स्त्री० [सं० भाव् ] ध्वनि, में झुलसना । आवाज ।
उदा० जो कछु ऊभरि और कहै, यह जीमहि उदा० गीतनि भास भिदै घनानन्द रीझत
भूभरि सी भुरसौं जू ।
-देव भीजत भावते भायनि ।
-घनानन्द भुर्यापन - संज्ञा, पु० [हिं० भोलापन] भोलापन, भिदिपाल-संज्ञा, पु० [?] छोटा डंडा जो फेंक मढ़ता, अज्ञानता । कर मारने के काम में लाया जाता था।
उदा. अपनो न कोऊ बंधु-बहिन भतीजे-सुत, उदा० परसा सुखेन कुंत केसरी गवय सुल विभी
भानजे न भामिनि, भुऱ्यापन कौ सपने । षन गदा गज सिदिपाल तारे हैं।
-ग्वाल -केशव | भुवभंग-संज्ञा, पु० [सं० भ्रूभंग] भ्रूभंग, त्योरी भी- संज्ञा, पु० [सं०] भय, डर ।
चढ़ना। उदा० पौन को पकरि करि गौन कों प्रकास, उदा० संग के रंग रंगे उमँगे सब अंग कहा भौन भीतिन पै दौरि, काहू भांतिन भई न भुवमंग सों लेखो।
-देव मी।
-देव | भुवा-संज्ञा, पु०, [हिं० घूमा ] रूई, घूमा भीरी-वि० [हिं० भिड़ना] १. एकत्रित, मुहा० लुवा भुवा होना-खिल्ली उड़ाने में इकट्ठी २. पास, निकट [क्रि० वि.]।
लग जाना, बदनामी करना। उदा० १. कहै पद्माकर अगार अनखीलिन की | उदा० ठाकुर यामैं अमारग कीन है तीन कही भीरी मोर भारन को भाँज दै री मौज
हम सों समझाई । चारह ओर तें -पद्माकर
काहेऽब रे तुम मोहि लुवा भुवा लै भई भुकना-क्रि० प्र० [?] गिर पड़ना, गिरना ।
माई। उदा० मारत ही भट हय तें भुकै । मट-नट मनौ
कवि बोधा भुवान, फैसो फल मैं पछिताई कुल्हाट चुकै।
-केशव विदा यहि मौगि अब ।
--बोधा भुजग भोजन-संज्ञा, पु० [सं०] सर्प ही जिसका भूड़-संज्ञा, स्त्री [हिं० भुरभुरा ] मिट्टी, धूल भोजन है अर्थात् गरुड़।
बालू । उदा० अजित अजान भुज भुजग भोजन जान, उदा० लुके भूड़ माना गई मासमाना । दुभुज सम्हारो, जदु-भूभुज भु लिख्या हौ।
---केशव -देव भूभरि-संज्ञा, स्त्री [सं० भू+भुर्ज] गर्म राख भुजपात-संज्ञा, पु० [सं० भूर्जपत्र] भोजपत्र, या धूल, गर्म रेत । जिस पर पुरा काल में-प्रशस्तियाँ आदि उदा० जो कुछ ऊभरि और कहै,- यह जीभहि लिखी जाती थीं।
भूमरि सौ भुरसौं जू ।
-देव उदा० बराति चंदन मलय ही, हिमगिरि ही भूभुज-संज्ञा, पु० [सं० भू०+भुज] राजा, भुजपात ।
-केशव नृप ।
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