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बलंद
बसीति शाली।
बलूला-संज्ञा, पु० [हिं० बबूला] पानी का उदा० सायक एक सहाय कर जीवनपति पर्यंत।
बुल्ला, बबूला, बुदबुदा । तुम नृपाल १. पालत छमा जीति दुमन उदा० कारे काल ब्याल. महाबली बलभद्र ऐसे. बर्वत ।
-कुमारमणि
बाली ऐसे, बलि से, बबूला से बिलायंगे । बलंद-वि० [फा०] उच्च, ऊँचा ।।
-देव उदा० छूटे बादबानन बलन्द जे जहाज मानो बलै-संज्ञा, पु। [सं० वलय] १. मण्डल पावत ढिलत नित नेह नदवारे से ।
२. कंकड़, ३. चूड़ी।
-पजनेस उदा० १. गोल कपोल लसै मुख ऊपर, रूप बलवार वि० [फा०] शिकनदार, टेढ़े, धुंघराले
अनूप, बलै बसुधा के।
--देव उदा० ग्वाल कवि विमल बिछात पै बिसुधि सोई बलो-संज्ञा, पु० [सं० वलय] चूड़ी, हाथ का बिछुरे सुबार, बलदार चित्त चोरे से । __ कंकड़ २. मंडल ।
-ग्वाल उदा० आपु तौ आये हौ रुसि लला उनके तौ बलया-संज्ञा, स्त्री० [सं० त्रिबली] त्रिबली,
छला को बलो भयो सोहै। -रघुनाथ पेट में पड़ने वाले तीन बल ।
२. बधिर धयो भुव वलय, प्रलय जलधर उदा० ये पै मेरो कर तेरी बलया बिची में धसि
जनु गर्जत । -- 'रसकुसुमाकर' से पूजि कुच शंभु पास पुजई घनेरी है। बलत्र--संज्ञा, पु० [सं० वरत्रा] रस्सी।
- ग्वाल उदा० जनु प्रकास बन बलित बलत्र । तरलित बलि-संज्ञा, स्त्री० [सं० बला] १. सखी
तुंग ताल के पत्र ।
-केशव २. पितृ श्राद्ध के समय कौवे को दिया बल्लभ-संज्ञा, पु० [सं० बलभी] १. अटारी, जाने वाला भोजन, ३. श्राद्ध पक्ष ।
छत २. बरामदा । उदा० १. देवजू बालम बाल को बादु बिलोकि उदा० प्रगटित होति बल्लभनि प्रभा। मोहति भई बलि, हौं बलिहारी ।
-देव देखि देव बल्लमा ।
-केशव ये अलि या बलि के अधरान में प्रानि
ताके पर बलभी बिचित्र अति ऊँची जासौं चढ़ी कछु माधुरई सी। -पद्माकर
निपटै नजीक सुरपति को अगार है। ३. आदरु दै दे बोलियत ब'इसु बलि की
-दास बेर ।
-बिहारी बसन रदन-संज्ञा, पु [सं० रद पट] रदपट, बली-संज्ञा, पु० [सं०बलराम] १. कृष्ण के प्रोष्ठ। बड़े भाई बलराम २. बलि निछावर (संज्ञा, उदा० कनक वरण कोकनद के बरण और झलस्त्री०)।
कत झांई तामैं बसनरदन की । -बलभद्र उदा० १. कान्ह बली तन श्रोन की छंछु लसै, बसात--संज्ञा, पु० [सं० वश| बश, अधिकार। अति जग्योपवीत सों मेलि ज्यों ।।
उदा० लियौ घेरि औचक अकेलो के विचारो - आलम
जीव, कछु न बसाति यो उपाय बल-हारे २. गगन की गैल लै चढ़ाई शैल नन्दिनि
की।
-घनानन्द सुछल दुलहा के बूढ़े बैल की बली गई। बसाना क्रि० स० [सं० वास] सुगंधित करना,
-देव सुवासित करना । बल्लक - क्रि० वि० [हिं० बलक] उमंगों के उदा० देव मैं सीस बसायौ सनेह के, भाल मृगंमद साथ, बलक के साथ।
विन्दु के भाख्यो ।
-देव उदा० खुले खेत की बल्लकै खूब कूदै । मनो | बसीठी-संज्ञा,स्त्री० [सं० अवसृष्ट, हिं० बसीठ]
खंजरीटान के गब्ब गूंदें। -पद्माकर दूत कर्म, दूतत्व, संदेश देने का काम । बल्लवी-संज्ञा, स्त्री० [सं० बल्लव] गोपी, | उदा० चूक कहौ किमि चूकत सो जिन्हैं लागी रहै प्रहीरिनी, ग्वालिन ।
उपदेश बसीठी।
--दास उदा० लगी रहै हरि हिय इहै, करि ईरखा | बसीति-संज्ञा, पु० [सं० वस्] वास, रहना ।
बिसाल, परिरंभन में बल्लवी, भलीदली । उदा० कथा मैं न, कंथा मैं न. तीरथ के पंथा मैं, बनमाल ।
-मतिराम
न, पोथी मैं, न पाथ मैं, न साथ की बसीति
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