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बरनों
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— सेनापति / ३. सेनापति निरधार, पाइपोस बरदार, हौं तो राजा राम चंद जू के दरबार को । -सेनापति बरना क्रि० स० [हिं० बटना] बटना, रस्सी
बनाना ।
उदा० त्यों इत आइ हरे दुरि के दरसायो भुवंगम बारन को बरि । - चन्द्रशेखर बरबट - क्रि० वि० [सं० बल + वश] बलपूर्वक, बरबस, हठात् जबरदस्ती ।
उदा, नैन मीन ए नागरनि, बरबट बाँधत आइ । मतिराम बरष – संज्ञा, पु० [फा० बर्ख] अंश, भाग, टुकड़ा, हिस्सा । उदा० कंधौं विधि विधिकर पूरन ससी को, चीर करि द्वे बरष राखे अनुप अतोल है ।
-ग्वाल
खेतों में
२. मयूर
बरहा - संज्ञा, पु० [हिं० बहा] १. सिंचाई के लिए बनाई गई नाली [सं० वर्हि ] ।
।
उदा० १. र्ते मत ऐसी धरै चित में विवेकी गनै बरहा सर ।
बरहे सघन सदा सुखदायक । हरि गोधन लायक ।
बरही - क्रि० वि० [सं० बलात्[ जबरदस्ती ॥२. मोर [सं० वहि ] ।
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जग तोहि
- बोधा हरे सजल घनानंद बलपूर्वक,
उदा० बर बीर यज्ञ बराह बरही लई छीनि सहसों । - केशव बराक- वि० [सं० वराक ] विचारा, दीन, बापुरा । उदा० बारि के बिहार बरं बारिज बराक बोल बात बात भावे न कपोती सुक पिक सों ।
- देव बराटि — संज्ञा, पु० [हिं० बरट] भिड़, बरं । उदा० गंग कहै कटि केहरि कौन बराटिहु सों कटि खीन खरी सी ।
बरार—वि० [सं० बल + आलय ]
गंग बली,
बरियार ।
उदा० बानर बरार बाघ बैहर बिलार बिग, बगरे बराह जानवरन के जोम हैं ।
- भूषण
बरारसो- संज्ञा, स्त्री० [अ० बर्उस्सान: ] १. वह दवा जो एक चरण के अन्दर रोग से मुक्त कर
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दे । २. वाराणसी, काशी । उदा० चोर को सनेही को है राड़ को सँघाती कहूँ निर्गुणी को दायक सरोगी को बरारसी । -बोधा बरिन्दी – संज्ञा, पु० [सं० इन्दोबर ] इन्दीवर,
कमल ।
उदा० गई कूल कलिन्दी बरिन्दी विलोचन, बैठी बिथोरि बड़ी अलकें । —बेनी प्रवीन बरियानी - वि० [सं० बल, हिं० बरियार ] बलवती, शक्तिशालिनी ।
बत
उदा धरा डारै खूंदे प्रेम फास कैसी फूँदै श्राजु, लेती द्वार मूंदे ऐसी बूंदें बरियानी है । — ठाकुर बरोठा,
बठी — संज्ञा, पु० [हिं० बार + कोठा] बैठक २. ड्योढ़ी, द्वार ।
उदा० बालम मेरो न माने कहयो, करें जंत्र घने बरुठी मैं ।
बरैती – संज्ञा, स्त्री० [सं० बलात्] अतिचार ।
मंत्र श्र
.- ग्वाल
ज्यादती,
-दास
उदा० कहि दास बरैती न एती भली सम्झौ वृषभानु लली वह है । बरैतें- -संज्ञा, स्त्री० [हिं० बढ़ तिन बढ़ता] ज्येष्ठ स्त्रियाँ, बड़ी बूढ़ी स्त्रियाँ
उदा० मोहि न देखौ अकेलियै दासजू, घाटह बाटहू लोग भरैसो । बोलि उठेगी बरतें लै नाउ तौ लागिहै अपनी दाउ अनैसो ।
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-दास
बरोठा - संज्ञा, पु० [हिं० बार + कोठा ] ड्योढ़ी, द्वार, पौरी । उदा० देव दिखैयन बरोठेई लूटे । बरोह-- संज्ञा, स्त्री० [सं० वट + रोह] बरगद की जटा । उदा० रेसम श्याम समूह किध किधौं काम बटे के वरोह अपार हैं । -रघुराज बर्याइ - क्रि० वि० [सं० बलात् ] बड़ी कठिनाई से, मुश्किल से, जैसे तैसे । उदा० ओर तें याने चराई पैहें अब ब्यानी बरयाइ मो भागिन श्रासौं । पद्माकर हे रघुनाथ भये रघुनाथ के आनन्द में इतनो धन दीन्हे । श्राजु सभा बिच श्री दसरत्थ के भिक्षुक भूप बर्याइ के चीन्है ।
दाग बने रहे, बाग बने ते - देव
- रघुनाथ
बबत - वि० [सं० बलवन्त] बलवन्त, शक्ति