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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पेलना ( १५५ ) पोटना २. लोचन बदाम हैं सुदाम जाके हरित | वारी] व्रतधारिणी, प्रतिज्ञा करने वाली। रतन बंदी पिसता की पेल हे । -ग्वाल उदा० जरो उह अखि जिन देख्यो भावै और पेलना-क्रि० स० [सं० पीड़न] १. दबाना, पुनि कीजै क्यों नजीकी जिय जग पैंजिवारी जबरदस्ती करना २. आगे बढ़ाना । -सुन्दर उदा० तो मिलिबे के विचारनि मैं अरु, मैं मन पैंडा--संज्ञा, पु० [हिं० पैंड] रास्ता, मार्ग । मुहा० ___ बार हजारन पेल्यौ। -सोमनाथ 4ड़े परना=पीछे पड़ना, बार-बार परेशान पेलनि-संज्ञा, पु० [हिं० पेलना] झगड़ा, झमेला करना। २. कसूर, दोष । उदा० पेड़े परे पापी ये कलापी। -घनानन्द उदा० जिय गल डारि जेलनि। अजहुँ समुझि पंधना-क्रि० स० [हिं० पहननाा पहनना। तजि पेलनि । -दास । उदा० पँधे मैल बसन असन बिन रही मानौ पेवरी-संज्ञा, पु० [हिं० पेवड़ी, पिवरैया पीला भूषन विरल तिय कीन्हैं चित चैन को । रंग, एक प्रकार का रंग जो गोमूत्र से निर्मित -बेनो प्रवीन होता है । पैरकारी-संज्ञा, स्त्री० [?] सीढ़ी, सोपान । उदा० पाँवरी पेवरी ता छिन तें, दुति कंचन की उदा० सौतिसुख उतरै को पियप्रेम चढ़िबे को, मन रंच न लैहै। -द्विजदेव कुंदन की प्यारी पैरकारी सी सँवारी है । पेसकस-संज्ञा, स्त्री० [फा० पेशकश] १. पुर -'हजारा' से स्कार, भेट, नजर २, जुरमाना । पैरिनगत - वि० [देश॰] प्राचीन, पीढ़ियों का । उदा० १. पेसकसे भेजत इरान फिरंगान पति उदा० कहा नाउँ केहि गाँउँ बसत ही कौन ठांउ उनहू के उर याकी धाक धरकतु है। घर तेरो। ---भूषण कही तुम्हारो कौन कहावत पैरिनगत को २. ठद्र मरहवा के निघट्रि डारे बाननि सौं. खेरो। -बकसीहंसराज पेसकसि लेत हैं प्रचंड तिलगाने की। पैसना - क्रि० प्र० [सं० प्रवेश] प्रवेश करना, -सोमनाथ घुसना । पै-संज्ञा, पु० [फा०] १. पट्टे के रेशे जो उदा० और कह्यौ चाह्यौ त्यौं न कछु कहौ। धनुष आदि पर चपकाये जाते हैं २. करण रघुनाथ इतनी कहति याते जिय में जो पैसे हो । कारक का चिन्ह, से, द्वारा। -रघुनाथ उदा० १.१ बिन पनिच बिन कर की कसीस बिन चलत इसारे यह जनको प्रमान है। पोइस-संज्ञा, स्त्री० [फा० पोयः] दौड़, सरपट -दास दौड़ ५. हटो, बचो [अव्य.]। २. रघुबीर को बिरह बीर मोपै न कह्यौ उदा० जाचक लाभ लह्यो यहै क्रूर कटक में परै। -केशव जाइ । पोइस धक्का धूलि तें पायो प्रान बैठी सजि संदरि सहेलिनि समाज बीच बचाइ। -पद्माकर बदन पै चारुता चिराक की बित रही। पोच-वि० [फा० पूच] १. अशक्त, क्षीण, हीन -प्रताप साहि । २. निकृष्ट, क्षुद्र, तुच्छ । पैक-संज्ञा, पु० [फा० पैकानी] पद्मराग, लाल।। उ उदा० १. बढ़ि के सकोच त्योंही मदनै दबाये देत उदा० लाल में, गुलाल में, गहर गुललालन में, परत मदन के सहाय सब पोच हैं। लालो गुन पैक सो न तूल है सुछंद के। -बेनी प्रवीन -ग्वाल | पोटना-क्रि अ० [हिं० पुटियाना] फुसलाना, पंच-संज्ञा, पु० [हिं० पेच] १. पगड़ी की लपेट । बहकाना, बातों में फंसाना २. समेटना, बटोरना २. घुमाव ३. चालाकी ४. पगड़ी का भूषण, [क्रि. स०]। सिरपंच । उदा० ललिता के लोचन मिचाइ चन्द्र उदा० १. आनँद लाज लपेटी तहाँ लखि पैच में भागा सों । जावक-दाग छिपावै । --कुमारमणि दुराइबे कों ल्याई वै तहाँई दास पोटि 4जिवारी-संज्ञा, स्त्री० [सं० प्रतिज्ञा+हिं० पोटि। -दास For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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