________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पेल
-देव
चंद घर।
पुरिया
( १५४ ) रक्षक, राजा ।
अपरस पूति सों न छाँडै अजौ छूति कौं। उदा० काम चोर ईठ हाथ मूठी के न ढीठ, देव
-घनानन्द ठाढ़े एक ठौर ए कठोर पुरवार से । -देव
पूर-संज्ञा, पु० [देश॰] बाढ़ २. प्रवाह । पुरिया-वि० [सं० परिपूर्ण ] परिपूरित, सनी
उदा० १. देव घनस्याम-रस बरस्यौ अखंडधार,
पूरन अपार प्रेम पूर नहिं सहि पर्यो उदा० सीरी लगै मुकतावलि तेऊ कपूर की धूरिन सों पुरिया है।
२. प्रांसुन के जल पूर में पैरति सांसन सों
-दास पुलिन - संज्ञा, पु० [सं०] १. बालू, रेती २.
सनि लाज लुरी है।
-देव नदी का किनारा ।
पर अँसुवान को रहयो जो पुरि प्रांखिन उदा० १. पुलिन कलिन्दी कूल की, तहँ बैठी ब्रज बाल । भई ध्यान में मगन सब,
मैं, चाहत बह यो पै बढ़ि बाहिरै बहै नहीं। आगम चहत गुपाल। -सोमनाथ
-पद्माकर
गोरे गरे मुकतालर, पूर ज्यों सारद ऊपर पुलोमजा - संज्ञा, स्त्री० [सं०] शची, इन्द्राणी ।
देवधुनी को।
-----देव उदा० पावस प्रदोष मेघ मिल्यो ज्यों सरद ससि,
नैनहि ह्व जल पूर बढ़यौ मृगलोचनी श्री ब्रज पुलोमजा न पाजु अरसाने की ।
दुक्ख समुद्र समानी ।
-चिन्तामणि -देव
पूष-संज्ञा, पु० [सं० पुष्प] १. सार, तत्व २. पुष - वि० [सं. पुष्ट] पुष्ट, दृढ़, बली।
पुष्टि, पोषण । उदा० पुष सेष-सायक ललाट लग्यो छत परयौ.
उदा० १. कंधों रसखानि रस कोस दग प्यास छिति मुरछित दरसाइ दन्त पीसनै ।
जानि, पानि के पियूष पूष कीनो विधि - समाधान
-रसखानि पुष्कर-संज्ञा, पु० [सं०] १. दिग्गज, हाथी २.
पंचा-संज्ञा, पु० [फा० पेंच] सिरपंच, पगड़ी कमल ३. जलाशय ।
पर लगाये जाने वाला एक आभूषण । उदा० कदन अनेकन बिघन को. एकरदन गन
उदा० केस कसि पगरी मैं बबरी बनाय बाल, राउ । बंदन जुत बंदन करौं, पुष्कर पुष्कर
मुगल बचे लौं एक पेंचा सजे जात है। पुष्कर पाउ । -दास
-बेनी प्रवीन पुहना - क्रि० स० [सं० प्रोत] १. गूंथना, पिरोना पेंधना-क्रि० स० [हिं० पहनना ] पहनना, २. छेदना ।
धारण करना । उदा. वेदनहू गने गुनगने अनग़ने भेद भेद बिनु
उदा. मोहन लाल के मोहन को यह, पेंधति जाको गुन निरगुनह पुहै।
- देव मोहन माल अकेली।
- देव पुही-वि० [हि० पोहना] गुंथी हुई, संग्रथित, पे-संज्ञा, [हिं० पै०] दोष, ऐब, अवगुण । जड़ी हुई, पिरोई हई, संयुक्त।
उदा० दाम परै गोहर को पे व गुन खुलें जैसें उदा० घहराती कछूक घटा घन की, थहराती तैसें काम पर नर जौहर खुलत है। पुहूपन बेलि पुही ।। –बेनीप्रवीन
-वाल पूखो - वि० [सं० पोषित] पोषित, पाला गया। पेचक- संज्ञा, पु० [सं०] १. बादल २. उल्लू उदा० तेरो तनु धनिक बनिक रूप रासि पुखो, पक्षी। मेरो मन भूखो दूखो बाँभन सो मचलै। उदा० पेचक मो दिस दिस पेचक मुदित मन
-बेनी प्रवीन
मेचक मेचक भरपूर निसि परी सी। पूठि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० पीठ] पृष्ठ, पीठ ।
-गंग उदा० ऊँचे पाँजर जठर उदार । मोटी बर्तुल | पेल-संज्ञा, स्त्री॰ [हिं० पेलना] १. भीड़-भाड़ पूठि अपार ।
--केशव | २. अधिकता भरमार । पूति-संज्ञा, स्त्री० [सं०] १. दुर्गध, बदबू २. उदा० १. ग्वाल कवि बाहन की पेल में, पहेल "पवित्रता, शुद्धता ।
में, कै बातन उचेल में, के इलम सफेल उदा० १. जनम जनम तें अपावन असाधु महा,
-ग्वाल
For Private and Personal Use Only