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पक्षी ( १४४ )
पटवारी विदुषी।
पच्छिपाल-संज्ञा, पु० [सं० पक्षी+हिं० पालतू] उदा० वै पढ़े पण्डित हैं छल मैं तुम, भौंह चढ़ा- पालतू पक्षी, गृह के पले हुए पक्षी।। वन माह पड़ती।
-बेनीप्रवीन । उदा० मोरन के सोर पच्छिपाल और पाये धायेपक्षी-संज्ञा, पु० [सं० पक्ष ] १. हिमायती, लावक चकोर दौरि हंसनि की दारिका । सहेली।
-देव उदा० गली द्वार दहलीज आँगन लों प्रागमन पछले-संज्ञा, पु० [हिं० पछेली] हाथ में पहनने पक्षी के कहत लस्यो पक्षिन के सोर सो। का स्त्रियों का कड़ा ।
-रघुनाथ उदा० लटकन लेरी फिर बांकी पहुँची न कस पखरामनी-संज्ञा, स्त्री० [सं० प्रक्षालन ] पैर
बाला बैसवारी जानि मुंदरी पछेले हैं। प्रचालन की क्रिया, पाँव पूजना, पैर धोने का
-बलदेव कार्य ।
पछयावरि-संज्ञा, पु० [बुं०] दही से निर्मित उदा० यह करी विधि सों लगुन, तब मुरगुन ने एक पेय पदार्थ जो भोजनोपरान्त दिया जाता
फेरि। करौ पांइ पखरामनी, सब कुटंब | है। ___ कों टेरि।
-सोमनाथ २. पीछे से परोसा जाने वाला मीठा, पकवान पखाल-संज्ञा, स्त्री० [सं० पय+हिं० खाल 1 | उदा० १. मोद सों तारकनंद को मेद पछ्यावरि मशक, चमड़े की वह बड़ी थैली जिसमें पानी
पान सिरायो हियोई।
-केशव भरा जाता है।
२. जोरी पछिौरी सकल, प्रथम कहे नहि उदा. जौही लगि पानौ तौ लौं देह सी दिखानी.
पार।
--नरोत्तमदास फेरि पानी गये खारिज पखाल ज्यों पुरानी पजरा-अब्य० [सं० पंजर] पाश्वं, निकट, पास ।
-पद्माकर उदा० नाम तिहारो पुकारै पखेरुवौ, पाहरु पंथ पखिया-संज्ञा, स्त्री० [सं० पक्ष] पंख, पर ।
परे पजरा के।
-देव उदा० १. रूप गुण सागर अनूप गुण आगर में पटकना-क्रि० अ० [हिं० पटक] किसी वस्तु का जाइ मिल्यौ हंस उड़ि प्रेम पखियान ते । सहसा फट या दरक जाना, निकल पडना ।
-देव उदा० पटक्योई पर यह अंकुर प्राँसलो ऐसी कछू २. बेगहि बूड़ि गई पखियां मधु की
रसरीति-धुरी।
-घनानन्द मखियां अखियां भई मेरी। -देव पटकीली-वि० [हिं० पटपटाना] सन्तप्त, जली पखियान-संज्ञा, स्त्री० [हिं० पक्खा, पाख ] हुई, मुंजी हुई, पटपटाई हुई । २. दबाने वाली ' पक्खा, दीवाल, भित्ति ।
वशीभूत करने वाली। उदा० डोलति न डीठि तें निकाई वह सोमनाथ उदा० १. लटकीली लंक त लूटाइलटे लेत लोग. देखी निसि जागि मैं जू लागि पखियान
सिर पटकीली भई सौतिन की छति है। सों। -सोमनाथ
–बेनी प्रवीन पगबदलो-संज्ञा, पु० [हिं० पाग+बदलना ] २. चटकीली पटकीली गटकीली बतियन, पगड़ी बदलने की रीति ।
हटकीली हेरी कत पारति विपति है। उदा० सुनो हतो अब लो पगबदलो मनबदलो इन
बेनी प्रवीन कीन्हो ।
-बक्सीहंसराज पटबीजन-संज्ञा, पु० [?] जुगुनू, खद्योत । पचतोरिया-संज्ञा, पु० [सं० पंच+हि० तोला] उदा०-मिलि के कच पुंजनि लाल चुनी चमकै एक प्रकार का महीन बस्त्र ।
घन मैं पटबीजन सो।
-आलम उदा० सेत जरतारी की उज्यारी कंचुकी की पटम-संज्ञा, पु० [?] छल-कपट ।
कसि अनियारी डीठि प्यारी उठि पैन्हों उदा. काहै की एतौ पटम रचत हो मन रूखे-मुंह पचतोरिया ।
-देव । चिकने बैन । आनंदघन भोर ही उनएपचौरी-संज्ञा, स्त्री० [बुं०] धोखेबाजी, चुगली।
उघरि उघरि दुख दैन।
-घनानंद उदा० कब काहू सोंकरी पचौरी कब हम कान्ह पटवारो-वि० [सं० पटु: खुशामद+हिं०वार
बुलाये। तुम्हरी प्रेम फांस के बाँधे प्रापुन (प्रत्यय)] खुशामदी, चाटुकार, चटुल । तें ये आये।
-बकसी हंसराज Jउदा० चोप-पटवारो-चित्त-चंचल-चकोर मेरी,
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