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तहतही ( ११४ )
तारक उदा० सखि ! कौंमल चित्त चकोरन पं, यह नाँहक । चाबुक । हायं तवाई परी।
-द्विजदेव | उदा० तुरत तुरंग करि तातौ ताहि ताजन दै, तहतही-संज्ञा, स्त्री० [अनु॰] शीघ्रता, जल्दी । फफकि फॅदाइ दियौ बाहर कनात को। उदा० तहतही करि रसखानि के मिलन हेतु बह
-चन्द्र शेखर बही बानि तजि मानस-मलीन की।
ताते-वि० [?] चंचल, तेज ।
-- रसखानि उदा० ठिले अत्ति हैं मह मातंग माते । उमंगत्त तहना क्रि० अ० [?] जलना, तप्त होना, खट
तैयार तूरंग ताते ।
-पद्माकर कना ।
तातो-वि० [?] तीव्र, तेज । उदा० जमुना तट बीर गई जब तें तबतें जग के
उदा० तुरत तुरंग करि तातो ताहि ताजन दै, मन माँझ तहौं ।
--- रसखानि
फफकि फॅदाय दियो बाहिर कनात के । तहराना-क्रि० स० [हिं० तेहा] क्रोध करना,
-चन्द्रशेखर झगड़ा करना।
ताब-संज्ञा, स्त्री० [फा०] दीप्ति, चमक, आब उदा० तहराती गोविंद सो गोप सुता, सिर प्रोढ़
२. ताप ३. शक्ति । नियाँ फहराती फुही। -बेनी प्रवीन उदा० पारिजात-जातह न, नरगिस छातह न तांकना क्रि० स० [सं० तर्क] तर्क करना,
चम्पक फुलात है न, सरसिज ताब में । विचार करना ।
-ग्वाल उदा० नावक सर से लाइ के, तिलक तरुनि इत
ताबुक-संज्ञा, पु० [सं० तापक, हिं० ताबा] तॉकि । पावक झर सी झमकि कै, गई
१. तावा, लोहे का चक्राकर वह पात्र जिसमें झरोखा झॉकि ।
-बिहारी
रोटियां सेंकी जाती हैं। २. तापक ३. ज्वर । तांदुर - संज्ञा, पु० [सं० तंदुल] तंदुल, अक्षत,
उदा० खिन एक ते खोइ गयो कछु है तरुनी को चावल ।
तप्यौ तनु ताबुक सो।
-देव उदा० तांदुर बिसर गई बधु तें कहयों ले प्राव तब ते पसीनों छूट्यो मन तन को तयो ।
तामरा-वि० [सं० ताम्र] लाल, ताँबे जैसे रंग
का । तांसी-संज्ञा, पु० [सं० त्रास] १. दुख २. धम
उदा० तामरा बदन क्यों करित मोती चूर आँखें, की, डॉट ।
सुरुख सुपेद हयाँ सिराइ जी में पाई है। उदा० १. राधिका के मिलिबे को गोविंद,
-बेनी प्रवीन कितेक दिनान लौं देत हों ताँसी।
तायफा-संज्ञा, स्त्री० [फा०तायफ़ा] १. वेश्याएँ
-. ग्वाल और उनके साथ रहने वाली मंडली २. वेश्या । ताई -संज्ञा, स्त्री० [हिं० तवा, तई (स्त्री०)]
उदा० १. तनन तरंग तान तोमद कलश तैसी एक प्रकार की छिछली कढ़ाई।
तायफा तड़ित गति भरत नई नई । उदा० बिरह रूप विपरीत, न बाढ़ी । हिये मनो
-घनश्याम ताई के काढ़ी।
-बोधा | तायल–वि. [हिं० तरायल] तेज, चंचल २. ताछन - संज्ञा, पु० [सं० तक्षण-कटाब. कावा । उतावले, शीन गामी जल्दबाज । उदा० उड़त अमित गति करि करि ताछन । उदा० चली छार से करत खुर-थारनि पहार, जीतत जनु कुलटान-कटाछन ।
अति तायल तुरंगम उड़त जनुबाज । - पद्माकर
-चन्द्रशेखर ताछना-क्रि० सं० [प्रा० तासन, सं० त्रासन] तार - संज्ञा, पु० [सं० तल] तल, सतह । त्रस्त करना, संतप्त करना ।
उदा० गौतम की नारी सिला भारी ह्व परी ही उदा० कान्ह प्रिया बनिकै बिलसै सखी साखि
नाथ, ताही पै पधारे, त्यागि महामद सहेट बदी जिहि काछे। कवि 'पालम'
तार है।
-ग्वाल मोद विनोदनि सों तन स्वेद समै मदनज्जल तारक-वि० [सं० ताड़ना] १. दण्डक, ताड़ना - ताछे।
-आलम देने वाला, सजा देने वाला २. तारने वाला ताजन-संज्ञा, पु० [फा. ताजियाना] कोड़ा, I पापों से उद्धार करने वाला।
- ग्वाल
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