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-दास
सवाई तरराइ चलीं अँसुवान की धारै ।।
बात देवाल तरी सों।
-कवीन्द्र तरेरी–वि० [हिं० तरेरना] तिरछी। तरह-संज्ञा, स्त्री० [अ०] ढंग, रीति, ढब । उदा० रावरी हाँसी बिलोकन सों, अरु बांसुरी की उदा० संगति में बानी की कितेक जुग बीते देखि
सुनि तान तरेरी ।
---सोमनाथ गंगा पै न सौदा की तरह तोहि प्रावती । तरौटा-संज्ञा, पु० [सं० अंतरपट] अँतरौटा,
___ -- दास साड़ी के नीचे पहनने का कपड़ा, साया । तरहदार वि० [फा०] सुन्दर प्राकृति वाले, उदा० सुरंग तरौटा सोहै सारी सार सेत की। अच्छी बनावट के।
-आलम उदा० तावगीर तरुतोर तरुन तरहदार, तरायल तरींस-वि० [सं० तल+ीस (प्रत्य॰)7 निचली सहित मैगल धाइयत हैं।
--गंग
तह का, नीचे की सतह का तराग-संज्ञा, पु० [सं० तड़ाग] तड़ाग, तालाब। उदा० स्याम सुरति करि राधिका तकति तरनिजा उदा. जोबन की बनक कनक मनि मोतिन सों तीर असुवन करति तरौंग को खिन खौरौंहो तनक तनक पूरी पानिपतराग सी।
नीर।
-बिहारी --देव | तर्ण-संज्ञा, स्त्री० [सं० तरणी] तरणी, नाव, तराइल-- वि० [सं० तरल] चंचल, अस्थिर।। नौका । उदा० घायल तराइल सी मानो करसाइल सी, उदा० दीरघ मत सत कबिन के अर्थाशय लधुतर्ण, बार-बार बाइल सी घुमति घरिक ते ।
__ कबि दूलह याते कियो कवि-कुल-कंठा भणं । -पालम
-दूलह तराना-क्रि० स० [हिं० तरियाना] किसी वस्तु तलप-संज्ञा, स्त्री० [सं० तल्प].. शय्या, सेज,
का पानी आदि के नीचे जाना, नीचे पड़ना, पलंग २ अटारी । कम होना, दब जाना।
उदा० १. आवा सी अजिर औनि तावा सी तलप उदा० उतराती सी बैन तराती भई इतराती बधू
--दास इतराती जगी।।
-देव
२. तलप सुहाती पीकी तलप सुहाती जी तरायल-क्रि० वि० [सं० स्वरा] त्वरा से, की तलप अलप जाती प्राण सुख पावते ।
जल्दी से, शीव्रता से उदा। प्रागें प्रागें तरुन तरायले चलत चले. तला-संज्ञा, पु० [हिं० तालाब] तालाब, सरोवर। जिनके प्रमोद मंद मंद मोद सकस ।
उदा० तला तोयमाना भए सुख्खमाना । -भूषण
-केशव तरारे---वि० [अ० तरीरीचंचल, मुखर ।
तलाबेली--संज्ञा, स्त्री० [हिं० तलबेली] पातुरता, उदा० धंसिक धरा के गाढ़े कोल की कड़ाके बेचैनी, छटपटाहट । डाढ़े पावत तरारे दिगपालन तमारे से । उदा. जौलौं हौं न चली तो लौं कैसी करी
-भूषण तलाबेली।
-सुंदर तरासना-क्रि० स० [फा० तराशना] काटना, तलीम--संज्ञा, स्त्री० [अ० तालीम] तालीम, कुतरना।
शिक्षा, उपदेश । उदा० तिनही तिनही लखि लोभ डस ।
उदा० सब सुखदायक सुसील बड़े कीमति की. पट तंतुन उंदुर ज्यों तरसै । -केशव
भई है तलीम तलबेलियो मनोज की तरिता-संज्ञा, स्त्री० [सं० तड़ित्] बिजली,
-तोष विद्युत् ।
तवना-क्रि० अ० [सं० तपन] जलना, संतप्त उदा० तारिका बलय बीच तारापति के नगीच होना। तरनि तिमिर तरे तरिता तरप सी।
उदा० सत्व के समत्व सौं असत्व सत्व सुझि -देव
परयो, तत्व के महत्व सौं ममत्व मात त्वै तरी अव्य [सं० तटी] १. निकट, पास २.
गई।
-देव नाव [संज्ञा, स्त्री.]
तवाई---संज्ञा, स्त्री० [सं० ताप] विपत्ति, कष्ट । उदा० १. हेरत घात फिरै चहुधा ते प्रोनात है। मुहा० तवाई पड़ना-कष्ट पड़ना ।
फा० १५
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