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( १०४ )
ठयना उदा० दुबरी भई है देह इति न गई है बाल तब | उदा० बैरिनि जीभहि टोभ दै री मन बैरीको ही मसाल अब दिया की सी टेम है। । भुजि के मौन धरौंगी।
-देव -रघुनाथ टोया -संज्ञा, पु० [हिं टोना] टोटका, टोना, टैठी-वि, [प्रा. टेटा] चंचल, अस्थिर ।
नज़र । उदा. पैठत प्रान खरी अनखोली सुनाक चढ़ाएई- उदा भूषन वे मनि मोतिन के लखि, सौतिन के डोलत टैठो ।
-घनानन्द उर लागत टोया ।
-देव टोडिस-वि . [?] शरारतो, बदमाश ।
टोह-संज्ञा, स्त्री० [देश ?] खोज, खबर । उदा० टोडिस नयी भयौ डोलत आनंद घन तिन उदा० और ठौर कहूँ टोहे ह न अहटाति है । ही सों पगि खगि जिनसों पूजी जियमास ।
-मालम -घनानंद टोहना-क्रि० स० [हिं० टोह खोजना, टटोटोड़िक-वि० [सं० तुंदिक] पेटू, पेटवाला । लना, २. छूना । उदा, टोड़िक व घनानंद डाँटत काटत क्यौं । उदा० . बृन्दा सी वृन्द अनेक छली तहँ गूजरीनहीं दीनता सों दिन ।
-घनानन्द नेह सों को अंग टोहै।
-ठाकुर टोम--संज्ञा, पु० [हिं० डोम] टोंका ।
टौर-संज्ञा, पु० [हिं० टेर ?] दाँव, घात, उदा नैन मुदै पै न फेर फितूर को टंच न टोभ । अवसर २. जाँच, थाह, परीक्षण।। कछू छियना है ।
-पद्माकर | उदा. यह ग्रोसर फाग को नीको फब्यौ गिरिटोभ देना-क्रि० स० [देश॰] किसी फटी वस्तु । धारी हिले कहूँ टौरनि सों। -घनानन्द को जोड़ना, बन्द करना, सी देना ।
ठटना-क्रि० अ० [हिं० ठाठ] सज्जित होना, । उदा. ठहरै नहिं डीठि फिरै ठठकी इन गोरे कपोशोभा पाना, सजना।
. लन गोलन पै ।
-ठाकुर उदा० दमकि दमकि जाति दामिनी चहँघा चारु ठठुकना-क्रि० अ० [हिं० ठिठुकना] ठहरना चमकि चमकि चूनरी में अंग ठठि उठे। चलते-चलते सहमा रुक जाना।
-ऋषिनाथ | उदा० प्यारे सुजान समीप कों बाल चलै ठट्रक संगति कै फनि की, मनि सीस ते चाहत, मुरिक मुसिकाति है।
-सोमनाथ देव सुकैसे ठटैगी।
-देव ठभरना-क्रि० स० [बुं०] धोखा देना, छलना । ठट्ठ-संज्ञा, पु० [हिं० ठट] १. समुह, झुंड
उदा० काहे को तुम हम को लालन दबरत ठभरत २. बनाव, सजावट, रचना।
ठाढ़े।
-बकसी हंसराज उदा० १. ठट्ठ मरहट्टा के निघट्टि डारे बानन सौं,
ठयना-क्रि०अ० [अनुष्ठान] १. स्थित होना, खड़ा पेस कसि लेत हैं प्रचंड तिलगाने की।
होना, ठहरना लगना, जमना २. करना, ठानना।
उदा० १. इतनी सुनि दीन मलीन भई, मुख मोहनी -सोमनाथ ही की चितौत ठई ।
-देव २. उतै पात साहज के गजन के ठट्ठ छूटे,
चित दै चितऊँ जित अोर सखी तितनंद उमड़ि घुमड़ि मतवारे घन कारे हैं।
किसोर की ओर ठाई।
-देव -सोमनाथ
२. पालम कहत अाली अजहूँ न आये पिय ठठकना-क्रि० प्र० [सं० श्रेष्ठ] स्तंभित होना, फैधौं उत रीत बिपरीत बिधि ने ठई । डरजाना, एक बारगी रुक जाना ।
-आलम
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