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-देव
मुलामुल
झोर . पीपल पत्ता ।
झेरी--संज्ञा, स्त्री० [हिं० झेल] १. व्याकुलता उदा० झीन पट मैं झूलमूली झलकति प्रोप उद्विग्नता २. बखेड़ा, झगड़ा, झंझट । अपार ।
-- बिहारी उदा० १. पानंदधन रसपियन जियन की प्रान झुला झुल-वि० [हि० झलझलना] झलझलाती
पपीहा तरफरात है उर-झरी सौं । हुई, चमकती हुई।
--घनानंद उदा० अलाअल्ल झूमैं सु झूल लदाऊ । मनो। झेल--संज्ञा, स्त्री० [फा० देर] १. बिलंब. देर चंचला चौंधि कूर्दै सदाऊ। --- पद्माकर !
२. झगड़ा । झूमना-क्रि० अ० [हिं० जूझना] जूझना, उदा० १. व्यभिचारिन को केलि में झेल न रंचक मरना।
होय लाज तजै उर उर भर्ज हरबरात उदा० स्वारथ न सूझत, परारथ न बूझत,
है दोय ।
--बोधा अपारथ ही झूझत, मनोरथ मयो फिरै ।
ताते नाथ झेल नहिं कीजै ।
मेरो एकरार सुनि लीज। भूनरिया--संज्ञा, पु. [हिं० भूना] लहँगा ।
--बोधा उदा० अंग अंग अनंग तरंग मई, लखिये अंगिया ।
झेलना--क्रि० स० [हिं० झेल] १. फेंकना, यह भूनरिया ।
- बेनी प्रवीन
छोड़ना, डालना २. हटाना, रोकना। भूना- संज्ञा, पु० [देश॰] घाघरा, लँहगा २. उदा०१ पै इक या छवि देखिबे के लिए मो झीना, महीन, पतला ।
बिनती के न झझोरन झेलौ । उदा० भूना की झकोरन चहँघा खोरि खोरिन में
-पद्माकर खूब खुसबोइ के खजाने से खुलत जात ।
२. पर्वत पुंज जिते उन मेले । -पद्माकर
फूल के तूल लै बानन झेले । भूमे झलाबोर झुक भूना पै झमंक झूम
--केशव झपक झपाक झप झाकिन मैं झुलझूले ।
भेलाल-संज्ञा, स्त्री० [हिं० झेल] किसी वस्तु
-पजनेस __ को जल्दी जल्दी फेंकना २. ग्रहण, लेना ३. झूमरि-संज्ञा, स्त्री० [हिं० भूमर] घेराव, घेरा, ठेला ठेल, धक्की धक्का। भीड़, समूह ।
उदा० झेलाझेल झोरिन की मूठिन को मेलामेल उदा० सखिनि के संग में अनंग मद भीनी जाप,
रेलारेल रंग की उमंग सरसत है। भूमरि सी परति अनंत उपमानि की ।।
-- पद्माकर --सोमनाथ मैं-वि० [हिं० झावा श्याम, काला । झरी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० झूर] १. शुष्कता, उदा० को सकै बरनि बारि-रासि की बरनि, नभ रुखाई, न्यूनता, कमी।
मैं गयौ झरनि, गयौ तरनि समाइ के। उदा० ते अब मेरी कही नहिं मानत राखति है
-सेनापति उर जोम कछू री । सो सब की छुटि जात झोप-संज्ञा, स्त्री० [हिं० झोपा] झब्बा, गुच्छा, भटू जब दूसरो मारि निकारत झूरी ।
तारों का गुच्छा शोभा के लिए आभूषणों और बोधा
कपड़ों में लटकाया जाता है। भेटना-क्रि० अ० [हिं० झेपना] भैपना, शर
उदा० नंदराम कामिनी अतर तर कीन्हें बास माना, लजाना।
केस पास गुंफित मुफित झोप झलकी । उदा० चाल अटपेटी जात सखि लखि लेटी जात
- नंदराम सकुचि सुभेटी जात छेटी जात सान की। भोपना-क्रि० अ० [सं० झंप] उछलना, कूदना
--हजारा से
मस्ती के साथ झूमना । भैर-दे० "झेल" ।
उदा० गोपन के झुंड झोपै -करै चौपै चाँचरि मैं, उदा० लाजनि रचति भैर भली अभिसार-बेर, । तोपे देत अबिरन बन बाम गैल भौन । हेरत वे भग, जाकी प्रीति सों पगति है।
- बेनी प्रवीन -कुमारमणि झोर-संशा, पु० [हिं० झालि] तरकारी का
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