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पांचवाँ उच्छ्वास
हमारी इच्छा है। एकाकी जाने की इच्छा तो नितान्त हास्यास्पद है। तुमने यह नहीं सोचा कि प्रोसित पतिका युवती पत्नी की क्या दशा होती है ? मेघ के साथ हो बिजली की शोभा है । पति के साथ ही सच्चरित्रा पत्नी की शोभा होती है। कृषक के बिना खेती और माली के बिना पुष्प-वाटिका की तरह पति के बिना दूसरों के आश्रित स्त्री की शोभा नहीं होती । स्वच्छन्द रूप से पिता के घर बहुत काल तक रहने वाली कन्याएँ आँखों में कांटों की भांति चुभने लगती हैं। इसलिए तुम्हें अपनी भार्या के साथ ही जाना है, ऐसा हमारा अभिमत है । इससे हमारे कर्तव्य का भार भी हल्का हो जायेगा। अन्यथा निरन्तर चिन्तातुर हृदय से आप वहाँ और हम यहाँ रहेंगे।' इस प्रकार अच्छी तरह से कहने पर भी रत्नपाल अपनी पत्नी को साथ ले जाने को तैयार नहीं हुआ।
राजा और रानी उसे रोकने में असमर्थ रहे । समस्या का प्रतिकार नहीं हुआ। अब हमें क्या करना चाहिए ? यह सोच दोनों चिन्तित हो गए। इतने में ही कोई एक अपरिचित प्रौढ़ जटाधारी व्यक्ति जो विविध यंत्र, मंत्र और तंत्र का ज्ञाता था, वहां आया। राजा और रानी ने सविनय वन्दन किया
और उसकी यथोचित पूजा की। वह बहुत प्रसन्न हुआ। राजा के उद्विग्न और म्लान मुख कमल को देखकर तत्काल उसने कहा-नरेश ! आज आपका मुख हिम से आहत कमल की भांति (म्लान) दिख रहा है ? क्या आपके मन में कोई ऐसा अन्तःशल्य विद्यमान है ? यदि कहने योग्य हो तो आप उसे प्रगट करें, जिससे कि मेरे जैसा व्यक्ति उसका कोई प्रतिकार
ढूंढ सके।"
राजा ने सखेद कहा- 'भगवन् ! कहने से क्या होगा ? कोई उपाय नहीं दीख रहा है । हाय ! असंगत हो रहा है।'
जटाधारी योगी ने पुनः जिज्ञासा की कि-यदि गुप्त न हो तो मेरी सुनने की इच्छा है ।'
'महात्माओं के समक्ष क्या गोपनीय हैं'---ऐसा सोचकर राजा ने अपने जामाता के एकाकीगमन की उत्सुकता बताते हुए सारा वृत्तान्त कह सुनाया। 'यहां बल प्रयोग उचित नहीं है। इसके साथ मैं अपनी पुत्री को कैसे भेज सकता हूँ—यह बड़ी चिन्ता है ।'
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