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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पांचवाँ उच्छ्वास का प्रथम प्रयास विचित्र होता है"-इस प्रकार कुमार शंकित हो गया। अथवा क्या यह सारा रहस्य 'अन्धवर्तकीयन्याय' से घटित हो रहा हो ? मुझे इसका उत्तर दक्षता से देना चाहिए, ताकि मेरा सामयिक कृत्य विनष्ट न हो । कुछ सोचकर रत्नपाल ने कहा-“रोगों का आक्रमण भीषण हो सकता है । उनका प्रतिकार अनेक औषधोपचार से हो सकता है । पुष्पों के लिए आपका प्रश्न भी उचित है । किन्तु हम यहाँ के मनुष्यों से अपरिचित हैं। इसलिए हम कैसे जानें कि आपकी याचना यथार्थ है ? यदि स्वयं राजमन्त्री यहाँ आकर सारा वृत्तान्त उचित रूप से बताएं और हमारा मन विश्वस्त करें तो संभव हैं कि यथेप्सित वस्तु प्राप्त हो सकती है। ___ रत्नपाल की युक्ति-युक्त बात सुनकर दोनों राजपुरुष प्रसन्न हो गए। शीघ्र ही हम महामात्य को पुष्प लेने भेजेंगे-इस प्रकार कहते हुए दोनों नगर दिशा की ओर सहसा दौड़ पड़े। ___ भाग्यशाली कुमार रत्नपाल अनेक विध कल्पना करता हुआ, अपने अदृष्ट भविष्य की गवेषणा करता हुआ वहीं ठहर गया। इधर मन्त्री कई सभ्य नागरिकों के साथ उसके पास आया। उसकी आँखों में अमृत बरस रहा था। आपस में 'जयजिनेन्द्र' की विधि सम्पन्न हुई। कुशलपृच्छा के पश्चात कहां से आना हुआ-आदि परिचयात्मक प्रश्नोत्तर हुए । धृतिशील प्रधान ने कुमार को राजा की दुःसह अक्षि-वेदना से परिचित कराया। उसने कहा-हमने अनेक उपचार किए, परन्तु रोग का उपशमन नहीं हुआ, पीड़ा बढ़ती ही गई । एक कोई अनुभवी वैद्य आया । उसने निदान किया और वह यथार्थ स्थिति पर पहुंचा । उसने औषध प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह दाडिम और धातकी पुष्पों के साथ प्रयुक्त होती है । संयोगवश बहुत ढंढने पर भी कहीं नहीं मिले । रोगी के लिए वेदना को क्षणमात्र तक सहना भी कठिन था, परन्तु अशक्य और निरुपाय अनुष्ठान के लिए क्या किया जा सकता था ? अचानक ही हमने यह सुना कि कोई सामुद्रिक व्यापारी समुद्र तट पर रुका हुआ है। पीड़ित व्यक्तियों के मन में चारों ओर से आशा की लहरें उमड़ती ही रहती हैं । अतः उन्होंने सोचा संभव है कि आगन्तुक व्यक्ति के पास वह वस्तु हो ? इसलिए हमारे आदमी आपके पास आए । मैं भी उन्हें प्राप्त करने आपके पास आया हूँ। आप इच्छानुसार मूल्य लें और हमें वह जीवनदायक अमूल्य वस्तु दें । वस्तु मूल्यवान् नहीं होती, मूल्यवान होता है समय । यदि आपके पास वह वस्तु हो तो For Private And Personal Use Only
SR No.020603
Book TitleRayanwal Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
PublisherBhagwatprasad Ranchoddas
Publication Year1971
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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