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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुसरा उच्छ्वास से तथा आंसुओं को बहाती हुई भानुमती म्लानहृदय और दुःखित मन से अन्त में पुत्र को समर्पित करती हुई बोली--'भव्य ! यह पुत्र हमारे हृदय का टुकड़ा, नयन को ज्योति, कृपण का धन और जीवन का सर्वस्व है । इस पर अनेक आशाएं हैं । एक क्षण के लिए भी इसे दूर करने के लिए मन नहीं होता, किन्तु भवितव्यता की बात अकथनीय होती है । भाग्य की रेखा अनुल्लंघनीय होती है। इसलिए विधिवत् इसकी सम्यक् सुरक्षा करें, कल्पवृक्ष की तरह इसकी सतत सेवा करें और धर्म की भांति इसका प्रतिपल पालन करें । और अधिक क्या कहूं, इसका एक भी बाल बांका न हो-ऐसा आप प्रयत्न करें। इस प्रकार बहुत कुछ बोलती हुई भानुमती ने बालक रत्नपाल को जोर से छाती से लगाया और सस्नेह उसके मुख का चुम्बन लिया। उस बालक को आंसुओं से सींचती हुई, अनेक शुभ आशीर्वादों से परितुष्ट करती हुई उसने अपने हाथों से उन भृत्यों के हाथों में उसे समर्पित कर दिया। देव द्वारा प्रदत्त उस हँसते हुए सुकुमार बालक को लेकर वे पुरुष शीघ्र ही मन्मन के पास आए। उन्होंने बालक की माँ भानुमती के अभिप्राय को ज्यों का त्यों निपुणता से प्रकट करते हुए अपने स्वामी मन्मन के हाथों में बालक को सौंप दिया। अनेक सामुद्रिक लक्षणों से युक्त तथा अनुकूल ग्रहबल को प्राप्त, उज्ज्वल भविष्य वाले उस बालक को देखकर मन्मन श्रेष्ठी बहुत प्रसन्न हुआ । उसने अपनी बांझ भार्या की गोद में उस देवार्पित पुत्र रूपी भेंट को रखते हुए कहा - 'किसने इस कल्पवृक्ष को बोया और सींचा है और कहां आकर यह फलित हुआ है ? यह किसने जाना था कि यह वंशभास्कर अपने घर को प्रकाशित करेगा ? कौन जानता था कि शुभ फल देने वाला भाग्य कब कैसे अकित रूप से शुभ फल दे देता है ! निश्चित रूप से यह जान लेना चाहिए कि यह बालक हमारा ही है, दरिद्रता से अभिभूत जिनदत्त का नहीं है । कब सोलह वर्ष पूरे होंगे ? कब यह पुत्र युवा होकर प्रस्थान करेगा ? कब यह ब्याज सहित धन कमाकर मुझे देगा? यह सारी बातें बादलों के चित्र की तरह कल्पना से ही मनोहर है । कौन जिएगा, कौन मरेगा---यह कौन जान सकता है ? सुभगे ! इसको अपना औरस पुत्र समझकर इसका तू पालन कर। इसके लालन-पालन में तनिक भी न्यूनता का अनुभव मतकर । आश्चर्य है कि मन्मन का क्षुद्र, तुच्छ और कृपण मन भी बालक के प्रबल पुण्य से उदार, प्रेम युक्त और अनुकूल हो गया। बालक को गोद में उठाकर For Private And Personal Use Only
SR No.020603
Book TitleRayanwal Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmuni, Gulabchandmuni, Dulahrajmuni,
PublisherBhagwatprasad Ranchoddas
Publication Year1971
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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