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विस्तृत विवेचना सहित
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आत्मा है। अनेक व्यक्ति मरने पर व्यन्तर हो जाते हैं, वे स्वयं किसीके सिर आकर कहते हैं कि हम अमुक व्यक्ति हैं, इससे भी आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है। अनेक व्यक्तियों को पूर्व जन्म का स्मरण भी होता है, यदि आत्मा अनादि नहीं होता तो फिर यह पूर्व भव-जन्म का स्मरण कैसे होता ? पृथ्वी, अप, तेज, वाय और आकाश इन पंच भूतों के साथ आत्मा की व्याप्ति नहीं है अर्थात् अचेतन के साथ आत्मा की व्याप्ति नहीं है; अतएव शरीर से भिन्न अात्मा है।
यह अात्मा स्वसंवेदन प्रत्यक्ष के द्वारा जाना जाता है. अपने प्राप्त शरीर के बराबर है तथा समस्त शरीर में आत्मा का अस्तित्व है; शरीर के किसी एक प्रदेश में प्रात्मा नहीं है, अविनाशी है, अत्यन्त आनन्द स्वभाव वाला है तथा लोक और अलोक को देखनेवाला है। इसमें संकोच और विस्तार की शक्ति है, जिससे जब शरीर छोटा होता है, तो यह छोटे आकार में व्याप्त रहता है
और जब शरीर बड़ा हो जाता है तो यह बड़े आकार में व्याप्त हो जाता है। कमिवर बनारसीदास ने आत्मा का वर्णन करते हुए कहा है
चेतनवंत अनंत गुन, पर्यय सकल अनंत । अलख अखंडित सर्वगत, जीव दरख विरतंत ॥
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