________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विस्तृत विवेचन सहित
प्रकारान्तर से पुद्गल के छः भेद हैं---बादरबादर, बादर, बादरसूक्ष्म, सूक्ष्मबादर, सूक्ष्म और सूक्ष्मसूक्ष्म । जिसे तोड़ाफोड़ा जा सके तथा दूसरी जगह ले जा सकें उसे बादरबादर स्कन्ध कहते हैं; जैसे पृथ्वी, काष्ठ, पाषाण आदि। जिसे तोड़ा-फोड़ा न जा सके, पर अन्यत्र ले जा सकें उस स्कन्ध को बादर कहते हैं, जैसे जल, तैल आदि। जिस स्कन्ध का तोड़ना, फोड़ना या अन्यत्र लेजाना न हो सके, पर नेत्रों से देखने योग्य हो उसको बादरसूक्ष्म कहते हैं; जैसे छाया, पातप, चाँदनी श्रादि। नेत्र को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों के विषय भूत पुद्गल स्कन्ध को सूक्ष्मस्थूल कहते हैं; जैसे शब्द, रस, गन्ध आदि। जिसका किसी इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण न हो सके उसको सूक्ष्म कहते हैं, जैसे कर्म । जो स्कन्ध रूप नहीं हैं ऐसे अविभागी पुद्गल परमाणुओं को सूक्ष्मसूक्ष्म कहते हैं। इस प्रकार भाषा, मन, शरीर, कर्म आदि भी पुद्गल के अन्तर्गत हैं।
धर्म द्रव्य ---इसका अर्थ पुण्य नहीं है, किन्तु यह एक स्वतस्त्र द्रव्य है, जो जीव और पदगलों के चलने में सहायक होता है। छहों द्रव्यों में क्रियावान् जीव और पुद्गल हैं, शेष चार द्रव्य निष्क्रिय हैं, इनमें हलन चलन नहीं होता है। यह द्रव्य गमन करते हुए जीव और पुद्गलों को सहायक होता है, प्रेरणा करके
For Private And Personal Use Only