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रत्नाकर शतक
पुद्गल कहते हैं। अभिप्राय यह है कि जो हम खाते हैं, पीते है, छते हैं, सूंघते हैं वह सब पुद्गल है। छहों द्रव्यों में पुद्गल द्रव्य ही मूर्तिक है, शेष पाँच द्रव्य अमूर्तिक हैं। हमारे दैनिक व्यवहार में जितने पदार्थ पाते हैं वे सभी पुद्गल हैं। हमें जितने पदार्थ दिखलायी पड़ते हैं, वे भी सब पुद्गल ही हैं। पुदगल का दोत्र बहुत व्यापी है। जीव द्रव्य के अनन्तर पुदगल का महत्त्वपूर्ण स्थान आता है, क्योंकि जीव और पुद्गल के संयोग से संसार चलता है, इन दोनों का संयोग अनादि काल से चला आ रहा है। पुद्गल द्रव्य के दो भेद हैं-- अणु और स्कन्ध : अणु पुद्गल के सबसे छोटे टुकड़े को कहते हैं, यह इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण नहीं होता है, केवल स्कन्धरूप कार्य को देखकर इसका अनुमान किया जाता है।
दो या अधिक परमाणुओं के बन्ध से जो द्रव्य तैयार होता है, उसे स्कन्ध कहते हैं। स्कन्ध द्रव्य के प्रागम में तेईस भेद बताये गये हैं। पुद्गल द्रव्य की पर्यायें निम्न बतायी गयी हैंसही बंधो सुहुमो थूलो संठाण भेद तमछाया । उजोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पजाया ॥-द्रव्य सं० गा० १६
मर्थ-शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थलना, आकार, खण्ड, अन्धकार, छाया, चाँदनी और धप ये सब पुद्गल द्रव्य की पर्यायें हैं ।
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