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रत्नाकर शतक
उच्च सैद्धान्तिक और दार्शनिक ग्रन्थों को भण्डारों में छिपाकर रखा । फलतः अनेक ग्रन्थराज प्रकाश और धूप के न मिलने से दीमकों के पेट में चले गये ।
दिगम्बर समाज काफी समृद्धशाली है। इस समाज में प्रति वर्ष सहस्रों रुपये का दान होता है, पर इस दान का वास्तविक सदुपयोग कम ही लोग करते हैं। साहित्य किसी भी देश, समाज और धर्म को जीवित रखने का साधन है। यदि किसी देश, धर्म या समाज को नष्ट करना है, तो उसका सरल उपाय उसके साहित्य को नष्ट कर देना है । दि० जैन समाज के नेताओं ने दीर्घकाल तक इस ओर दृष्टि नहीं डाली, जिसका परिणाम यह हुआ है कि आज हम और लोगों से बहुत पीछे हैं । यद्यपि अव सौभाग्य से दि० जैन संघ मथुरा, वीर-सेवा-मन्दिर सरसावा, जैन साहित्योद्धारक कार्यालय अमरावती, भारतीय ज्ञानपीठ काशी श्रादि संस्थाएँ दि० जैन साहित्य के प्रकाशन में कटिबद्ध हैं, तो भी हमें इतने से संतोष नहीं करना चाहिये। हम अपनी इस मन्थर गति से अभी कम से कम कई दशकों में अपने मूल ग्रन्थों का हा प्रकाशन कर पायेंगे ।
जिस प्रकार श्वेताम्बर साहित्य गुजराती भाषा में उपलब्ध है, उसी प्रकार दिगम्बर साहित्य कन्नड़ भाषा में । इस भाषा में सैद्धान्तिक एवं दार्शनिक ग्रन्थों के अतिरिक्त ज्योतिष, व्याकरण,
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