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आमख वर्तमान युग साहित्य प्रकाशन का युग है । आज सभ्य कहलानेवाले सभी देशों में साहित्य निर्माण की होड़-सी लगी है। रोज हज़ारों नहीं, बल्कि लाखों ग्रन्थ छप रहे हैं । भारत में भी स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से प्रतिदिन एक न एक नयी पुस्तक अवश्य प्रकाशित हो जाती है। नयी-नयी पत्रिकाएँ भी निकल रही हैं। इस प्रकार साहित्यिक क्षेत्र में घुड़दौड़ मची है।
जैन समाज का ध्यान भी साहित्य प्रकाशन की ओर इधर कुछ समय से गया है । श्वेताम्बर आम्नायवालों ने दिगम्बर आम्नायवालों की अपेक्षा इस क्षेत्र में पहले प्रवेश किया, जिससे आज के अधिकांश अन्वेषक विद्वान् श्वेताम्बर साहित्य से अधिक परिचित हैं। इस आम्नाय का समग्र प्राचीन साहित्य प्रकाशित हो ही गया है, नवीन साहित्य का निर्माण भी हो रहा है। पर हम दिगम्बर
आम्नाय के अनुयायी इतने पिछड़े हुए हैं कि हमारे समृद्धशाली प्राचीन साहित्य के प्रकाशन में अभी कई दशक लगेंगे, नवीन साहित्य का निर्माण कब होगा ? इसका पता नहीं ।
हमारे इस पिछड़ने का प्रमुख कारण हमारी अनैक्यता और उदासीनता ही है । बहुत समय तक तो हम इसी शंका में पड़े रहे कि ग्रन्थ छापने से अशुद्ध हो जायँगे । अतः हमने अपने
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