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आमुख
वैद्यक, नीति, शिल्पशास्त्र, साहित्य आदि विषयों के भी सैकड़ों ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों के प्रकाशन से जैन साहित्य के अनुपम रत्नों को जगमगाहट समस्त साहित्यिक जगत् को चमत्कृत किये बिना न रहेगी । आज आवश्यकता इस बात की है कि ये कन्नड़ भाषा के ग्रन्थरन हिन्दी में अनूदित होकर जनता के समक्ष रखे जायें ?
वर्षों से मेरा तथा मेरे दो-चार मित्रों का विचार था कि लोक भाषाओं में लिखित दिगम्बर साहित्य को हिन्दी में अनुवाद कर प्रकाशित किया जाय। परन्तु समुचित सहयोग न मिलने से मेरा
और मेरे साथियों का उक्त विचार पूरा न हो सका । सौभाग्य से श्री सम्मेद शिखर की यात्रा करते हुए गत मई मास में श्री १०८ प्राचार्य देशभूषण महाराज ससंघ यहाँ पधारे । आप कन्नड़ भाषा के अच्छे विद्वान् हैं तथा साहित्य से आपको विशेष अभिरुचि है। यहाँ के श्री जैन-सिद्धान्त-भवन के विशाल संग्रह का आपने अवलोकन किया तथा श्री पं० नेमिचन्द्र शास्त्री से परामर्श कर धर्मामृत एवं रत्नाकर शतक का हिन्दी अनुवाद करने का विचार स्थिर किया।
दोनों ग्रन्थों का अनुवाद कार्य पूर्ण हो गया है तथा इनका प्रकाशन किया जा रहा है। प्रकाशन व्यवस्था के लिये मुनि संघ के आहार दान के समय उदार दानी श्रावकों ने दान में जो रकम
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