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रत्नाकर शतक
____ अर्थ-जिसने आत्मा को सब दृष्टिकोणों से जान लिया है, उसने सब पदार्थों को सब प्रकार से ज्ञात कर लिया है। जिसने सब प्रकार से सब भावों को देखा है वही आत्मा को अच्छी तरह जानता है। अतः निश्चय सम्यग्ज्ञान द्वारा अपने आत्मस्वरूप को अच्छी तरह जाना जा सकता है।
सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान सहित व्रत, गुप्ति, समिति आदि का अनुष्ठान करना, उत्तम नमादि दस धर्मों का पालन करना, मूलगुण और उत्तर गुणों का धारण करना सम्यक् चारित्र' है। अथवा विषय, कषाय, वासना, हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रहरूप क्रियाओं से निवृत्ति करना सम्यक् चारित्र है। चारित्र वस्तुतः आत्मस्वरूप है, यह कषाय और वासनाओं से सर्वथा रहित है। मोह, क्षोभ से रहित जीव की जो निर्विकाररूप प्रवृत्ति होती है, जिससे जीव में साम्यभाव की उत्पत्ति होती है, चारित्र १-पंचाचारादिरूपं दृगवगमयुतं सच्चरित्रं च भाक्तमित्यादि
-अ० क० मा० श्लो० १३ २-असुहादो विणिवित्ती सुहे पविती य जाण चारितं । वद्-समिदि-गुत्तिरूवंववहारणयादु जिण-भणिय ॥
-द्र० सं० गा०४५ ३-साम्यं तु दर्शन-चारित्रमोहनीयोदयापादितसमस्तमोहक्षोभाभावादत्यन्त निर्विकारो जीवस्य परिणामः ।
-प्रवचनसार टी०७
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