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विस्तृत विवेचन सहित
___ अर्थ --संसार में सम्यग्ज्ञान के समान और कोई सुख देनेवाला पदार्थ नहीं है। जन्म, जा और मृत्यु इन रोगों को दूर करने के लिये ज्ञानरूपी अमृत ही महान् औषधि है। ज्ञान के बिना जो कर्म करोड़ों जन्मों तक तपस्या करने पर नष्ट होते हैं, उन्हें ज्ञानी मन, वचन, काय को वश कर गुप्तियों द्वारा क्षणभर में ही नष्ट कर देता है। अनन्त बार नव ग्रैवेयकों में पैदा होने पर भी आत्मज्ञान के बिना इस जीव को कुछ सुख नहीं मिला। ___ रुपया, पैसा, कुटुम्बी, हाथी, घोड़े, मोटर, महल, मकान आदि कोई भी काम आनेवाला नहीं है; सब यहीं पड़े रह जायेंगे । आत्मज्ञान ही कल्याण करनेवाला है। विषय-वासनारूपी आग को ज्ञानरूपी जल ही शान्त कर सकता है। क्योंकि स्व-पर भेद विज्ञान द्वारा यह जीव शुद्ध आत्मस्वरूप का अनुभव कर सकता है।
निश्चय सम्यग्ज्ञान अपने आत्मस्वरूप को जानना ही है । जिसने आत्मा को जान लिया उसने सबको जान लिया; जो
आत्मा को नहीं जानता है वह सब कुछ जानता हुआ भी अज्ञानी है। इसी दृष्टिकोण को लेकर स्याद्वादमंजरी में कहा गया है
ऐको भावः सर्वथा येन दृष्टः सर्वे भावा सर्वथा तेन दृष्टाः । सर्वे भवाः सर्वथा येन दृष्टाः, एको भवः सर्वथा तेन दृष्टः॥
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