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प्रस्तावना
ने कहा कि इसमें दो-तीन पद्य आगम विरुद्ध हैं, अतः इसका जुलूस नहीं निकाला जा सकता है। रत्नाकर कवि ने इस बात पर बिगड़कर पट्टाचार्य से वादविवाद किया। ____ पट्टाचार्य ने रत्नाकर कवि से चिढ़कर श्रावकों के यहाँ उसका
आहार बद करवा दिया। कुछ दिन तक कवि अपनी बहन के यहाँ आहार लेता रहा। अन्त में उसकी जैनधर्म से रुचि हट गयो, फलतः उसने शैव धर्म को ग्रहण कर लिया। इस धर्म की निशानी शिवलिंग को गले में धारण कर लिया। सोलहवीं शताब्दी में दक्षिण भारत में शैवधर्म का बड़ो भारी प्रचार था, अतः कवि का विचलित होकर शैव हो जाना स्वभाविक था। ____ कवि ने थोड़े ही समय में शैवधर्म के ग्रन्थों का अध्ययन कर लिया और वसवपुराण की रचना की। सोमेश्वर शतक भी महादेव की स्तुति करते हुए लिखा है। जीवन के अन्त में कर्मों का क्षयोपशयम होने से उसने पुनः जैनधर्म धारण किया।
रत्नाकर कवि के सम्बन्ध में किम्बदन्ती रत्नाकर अल्पवय में ही संसार से विरक्त हो गये थे। इन्होंने चारुकीर्ति योगी से दीक्षा ली थी। दिनरात तपस्या और योगाभ्यास में अपना समय व्यतीत करते थे। इनकी प्रतिभा अद्भुत थी, शास्त्रीयज्ञान भी निराला था। थोड़े ही दिनों में रत्नाकर की प्रसिद्धि सर्वत्र हो गयी। अनेक शिष्य उनके उपदेशों
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