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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकर शतक क्रिया द्वारा रात को महल में भीतर पहुंच जाता था और प्रतिदिन उस राजकुमारी के साथ क्रीड़ा करता था। कुछ दिनों तक उसका यह गुप्त कार्य चलता रहा। एक दिन इस गुप्त काण्ड का समाचार राजा को मिला। राजा ने समाचार पाते ही रत्नाकर कवि को पकड़ने की आज्ञा दी। कवि रत्नाकर को जब राजाज्ञा का समाचार मिला तो वह अपने गुरु देवेन्द्रकीर्ति के पास पहुंचा और उनसे अणुव्रतदीक्षा ली। कवि ने व्रत, उपवास और तपश्चयाँ की ओर अपने ध्यान को लगाया। आगम का अध्ययन भी किया तथा उत्तरोत्तर आत्मचिन्तन में अपने समय को व्यतीत करने लगा। ___ विजयकीर्ति नाम के पट्टाचार्य के शिष्य विजयण्ण ने द्वादशानुप्रेक्षा की कन्नड़ भाषा में संगीत मय रचना की थी। यह रचना अत्यन्त कर्णप्रिय स्वर और ताल के आधार पर का गयी थी। गुरु की आज्ञा से इस रचना को हाथी पर सवार कर गाजे बाजे के साथ जुलुस निकाला गया था। इस कार्य से जिनागम की कीर्ति तो सर्वत्र फैली ही, पर विजयगण की कीर्ति गन्ध भी चारों ओर फैल गयी। रत्नाकर कवि ने भरतेश वैभव को रचना की थी, उसका यह काव्य ग्रन्थ भी अत्यन्त सरस और मधुर था। अतः उसको इच्छा भी इसका जुलुस निकालने की हुयी। उसने पट्टाचार्य से इसका जुलुस निकालने की स्वीकृति माँगी। पट्टाचार्य For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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