________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकर शतक हे रत्नाकराधीश्वर ! भोग और उपभोग के प्राप्त होने पर, शरीर में दुःसाध्य रोग उत्पन्न होने पर, और दरिद्रता के पाने पर जो गृहस्थ संतोष धारण करके तुम्हारे चरण-कमल की शरण लेता है क्या उस का गार्हस्थ्य जीवन मुनि-श्रेष्ठ मार्ग के तुल्ये नहीं है ? // 50 // विवेचन-- जो व्यक्ति संसार के समस्त भोगोपभोगों के मिल जाने पर उनमें रत नहीं होता है, भगवान के चरणों का ध्यान करता है, तथा घर-गृहस्थी में रहता हुआ भी ममत्व से अलग रहता है, वह मुनि के तुल्य है। जिस गृहस्थ को संसार की मोह-माया नहीं लगी है, जो संसार को अपना नहीं मानता है, जिसे समता बुद्धि प्राप्त हो गयी है, वह घर में रहता हुआ भी अपना कल्याण कर सकता है। उसके लिये संसार को पार करना असंभव नहीं, वह अपने आत्मविश्वास, सज्ज्ञान और सदाचरण द्वारा संसार को पार कर लेता है। इस दुर्लभ मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर अनादिकाल से चली आयी जन्म-मरण की परम्परा को अवश्य दूर करना चाहिये / असाध्य रोग होजाने पर जो हाय-हाय करते हैं, चीखतेचिल्लाते हैं, विलाप करते हैं, वे अपनी जन्म-मरण की परम्परा को और बढ़ाते हैं। वे संक्लेश परिणाम धारण करने के कारण और दृढ़ कर्मबन्धन करते हैं। रोने-चिल्लाने से कष्ट कम नहीं होता For Private And Personal Use Only