________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 237 किसीको सुख या दुःख दे सके। मनुष्य केवल अहंकार भाव में भूलकर अपने को दूसरे के सुख-दुःख का दाता समझ लेता है। वस्तुतः अपने शुभ या अशुभ के उदय बिना कोई किसी को तनिक भी सुख या दुःख नहीं दे सकता है। संसार के सभी प्राणी अपने-अपने उदय के फल को भोग रहे हैं / अहंभाव और ममतावश मनुष्य अपने को अन्य का सुख-दुःख दाता या पालक-पोषक समझता है / पर यह सुनिश्चित है कि अपने सदुदय के बिना मुहँ का ग्रास भी पेट में नहीं जा सकता है, उसे भी कुत्ते-बिल्ली छीनकर ले जायँगे। माता-पिता सन्तान का जो भरण-पोषण करते हैं, वह भी सन्तान के शुभोदय के कारण ही। यदा सन्तान का उदय अच्छा नहीं हो तो माता-पिता उस को छोड़ देते हैं और उसका पालन अन्यत्र होता है। अतः अहंकार भाव को त्यागना आवश्यक है। यह ध्रुव सत्य है कि कोई किसी के लिये कुछ नहीं करनेवाला है / उपभोगं वरे भोगवैतरे मनोरागंगळि भोगिपं-। तुपसर्ग वरे मेण्दरिद्र बडसल्पं तोवमताळदुनि-॥ म्म पादाभोजयुगं सदा शरणेनुत्तिच्छेसुवंगा गृहा स्यपदं ताने मुनीन्द्र पद्धतियला रत्नाकराधीश्वरा // 10 // For Private And Personal Use Only