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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 236 रत्नाकर शतक लगते हैं, पर अशुभोदय के आने पर सभी लोग अलग हो जाते हैं; मित्र घृणा करने लगते हैं और धन न मालूम किस रास्ते से निकल जाता है। अत: सुख-दुःख में सर्वदा समता-भाव रखना चाहिये / ___ जो व्यक्ति इन कार्यों के विचित्र नाटक को समझ जाते हैं, वे दीन-दुःखियों से कभी घृणा नहीं करते उनको दृष्टि में संसार के सभी प्रकार के चित्र झनकते रहते हैं। वे इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि ये संसार के भौतिक सुख क्षणविध्वंसी हैं, इनसे राग-द्वेष करना बड़ी भारी भूल है। जो तुच्छ ऐश्वर्य को पाकर मदोन्मत्त हो जाते हैं, दूसरों को मनुष्य नहीं समझते, उन्हें संसार की वास्तविक दशा पर विचार करना चाहिये / यह झूठा अभिमान है कि मैं किसी व्यक्ति को अमुक पदार्थ दे रहा हूँ; क्योंकि किसी के देने से कोई धनो नहीं हो सकता / कौरवों ने कर्ण को अपरिमित धन दिया, पर क्या उस धन से कर्ण धनी बनसका ? कौरव पाण्डवों को सदा कष्ट देते रहे; उन्होंने लोभ में आकर अनेक बार पाण्डवों को मारने का भी प्रयत्न किया, पर क्या उनके मारने से या दरिद्र बनाने से पाण्डव मर सके या दरिद्र बन सके / किसीके भाग्य को बदलने की शक्ति किसी में भी नहीं है। चिरकाल से अर्जित कर्म ही मनुष्यों को अपने उदयकाल में सुख या दुःख दे सकते हैं। किसी मनुष्य की शक्ति नहीं, जो For Private And Personal Use Only
SR No.020602
Book TitleRatnakar Pacchisi Ane Prachin Sazzayadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmedchand Raichand Master
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1922
Total Pages195
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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