________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विस्तृत विवेचन सहित 226 हे रत्नाकराधीश्वर ! पूर्व में स्वयं पुण्य कार्य को न करके, व्यर्थ ही दूसरे के रूप, शृङ्गार, ऐश्वर्य, वैभव, भोग, अंगलेपन, सुगंधित वस्तुओं के उपयोग को, दान को, यौवनावस्था जैसी श्रेष्ठ सम्पत्ति को देखकर ईर्ष्या वश मुंह खोलकर आशारूपी महा जंगल में प्रवेश करके चिल्लाने से क्या होगा? // 17 // विवेचन---- संसार में सुख सम्पत्ति की प्राप्ति पुण्योदय के बिना नहीं हो सकती है। जिसने जीवन में दान, पुण्य, सेवा, पूजा, गुरुभक्ति नहीं की है उसे ऐश्वर्य की सामग्री कैसे मिलेगी ! वह दूसरों की विभूति को देखकर क्यों जलता है ? क्योंकि बिना पूर्व पुण्य के सुख-सामग्री नहीं मिल सकती है / देवपूजा गुरुभक्ति, पात्रदान आदि पुण्य के कार्य हैं। जो व्यक्ति इन कार्यों को सदा करता रहता है, उसके ऊपर विपत्ति नहीं आती है, वह सर्वदा आनन्द मग्न रहता है / केवल जिनेन्द्रदेव की पूजा का ही इतना बड़ा माहात्म्य है कि भाव सहित पूजा करनेवाले को सारी सुख-सामग्रियाँ उपलब्ध हो जाती हैं। कविवर बनारसीदास ने पूजन का माहात्म्य बतलाते हुए लिखा है:___ लोपै दुरित हरै दुख संकट, आवै रोग रहित नित देह / पुण्य भंडार भरै जश प्रगटै;मुकति पन्थसौं करै सनेह // For Private And Personal Use Only